बूंदी ब्रह्माकुमारीज संस्थान के बूंदी सेवा केंद्र के तत्वावधान में तिरुपति बिहार में स्थित ब्रह्मा कुमारीज, प्रभु प्राप्ति भवन में चल रहे "पांच दिवसीय मेडिटेशन अनुभूति शिविर"कार्यक्रम "बढ़ते कदम खुशियों की ओर" में वापी गुजरात से आये ब्रह्माकुमारी तुलसी दीदी जी ने अपने वक्तव्य में बताया - संतुष्ट जीवन को समझने से पहले हमें जीवन को समझना होगा जीवन अर्थात जब से हम जन्म लेते हैं और शरीर छोड़ने तक की हमारी यात्रा वह हमारा जीवन है जिसमें अलग-अलग तरह के अनुभव आते हैं। कोई बहुत अच्छे होते हैं जिसमें हमें कुछ अच्छी प्राप्तियां होती हैं और कुछ दिन ऐसे भी होते हैं जो हमारे मुताबिक अच्छे नहीं है एक-एक दिन मिलकर जीवन बनता है लेकिन यदि हमारा एक दिन भी हमारे मुताबिक नहीं है तो हम बहुत जल्दी असंतुष्ट हो जाते हैं और यहां तक कह देते हैं मेरा तो पूरा जीवन ही खराब हो गया क्या एक दिन से हमारा पूरा जीवन खराब हो जाता है? और वह दिन भी सिर्फ हमारे मुताबिक ठीक नहीं था कुछ पल हमें अनुभवी बनाने आते हैं। कुछ शिक्षा देने आते हैं। हमारी क्षमताओं को उभारने के लिए आते हैं। हमें परिपक्व बनाने के लिए आते हैं लेकिन हम यह तभी देख सकते हैं जब हम अपने नजरिए को बदलेंगे हमें जीवन तो बहुत सुंदर मिला है और हर बात में हमारा कल्याण है हम गीता सार कि उस बात को याद करें जो हमें सकारात्मक नजरिया देते हैं भगवानुवाच- जो हुआ अच्छा हुआ.... जो हो रहा है बहुत अच्छा.... और जो होगा बहुत-बहुत अच्छा...... ऐसी परिस्थितियों में हमें यह भगवानुवाच - सदा याद रखने चाहिए और अपना धैर्य बनाए रखना चाहिए तभी हमारे जीवन में संतुष्टता आ सकती है।

सदा संतुष्ट रहने के लिए हमें हमेशा प्राप्तियां की लिस्ट बनानी चाहिए कमियों की नहीं। लेकिन वर्तमान समय हम सिर्फ कमियां ढूंढ रहे हैं यहां तक की आज इंसान के मन में भगवान के लिए भी शुक्रिया के बजाय शिकायत है वह यही कहता है कि भगवान मेरी सुनता नहीं है। ऐसा मन संतुष्ट कैसे रहेगा। 

संतुष्ट रहना है तो जो मिला उसके लिए सदैव शुक्रिया कीजिए परमपिता का भी प्रकृति का भी। हमें इतना अनमोल शरीर मिला। जिसके एक-एक अंग की कीमत कितनी ज्यादा है प्रकृति ने हमें फ्री में दिया हम शुक्रिया करें इस जीवन को चलने और संभालने की शक्ति मदद परमात्मा हमें निरंतर दे रहे हैं हम उसका शुक्रिया अदा करें जीवन में शुक्रिया संतुष्टता को लेकर आता है और शिकायत संतुष्टि को तो अब से हम यह पक्का करें हमें जो मिला है हम उन सब प्रप्तियों को ध्यान पर रखेंगे और सदा परमपिता का शुक्रिया करेंगे।

भारी सुख सुविधा, ऊंची ऊंची डिग्रियां, बड़ी पद पोजीशन, संपत्ति यह सब हमारे संतुष्टता का आधार नहीं है। सच्चा संतुष्ट जीवन बनाने के लिए हमें आंतरिक रूप से भरपूर होने की जरूरत है। जितना हम आंतरिक गुण और शक्तियों से भरपूर होते जाएंगे उतना कम होने पर भी हमारे जीवन में संतोष बढ़ता जाएगा और यह प्राप्तियां परमपिता से मन को जोड़ने पर ही प्राप्त हो सकती हैं।उन्होंने कार्यक्रम में आए हुए सभी श्रोताओं को मेडिटेशन की अनुभूति करवाई और मेडिटेशन को निरंतर अपने जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित किया।।