सरकारी विभागों में कार्यरत अधिकारी-कर्मचारियों की जनता के कामों के प्रति जवाबदेही तय करने के लिए कानून का ड्राफ्ट पिछले 3 साल से फाइलों में धूल फांक रहा है। ड्राफ्ट तैयार होने के बावजूद पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार इस बिल को सदन में नहीं रख पाई, जिससे ये कानून का रूप नहीं ले पाया। अब प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद सिविल सोसाइटी ने एक बार फिर से इस कानून को प्रदेश में लागू करने के लिए कवायद शुरू कर दी है। सिविल सोसाइटी के लोग सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय के नेतृत्व में जल्द ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मुलाकात कर आगामी विधानसभा सत्र में इस बिल को रखने की मांग करेंगे। कांग्रेस पार्टी ने साल 2018 के विधानसभा चुनाव के अपने घोषणा पत्र में जवाब देही कानून लागू करने का वादा किया था। सरकार बनने के बाद 2019 में रामलुभाया कमेटी भी बनाई थी। कमेटी ने फरवरी 2020 को अपनी रिपोर्ट और मसौदा सरकार को भेज दिया था, लेकिन उसके बाद मामला आगे नहीं बढ़ पाया। सिविल सोसायटी के लोगों ने गहलोत सरकार और कांग्रेस पार्टी पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए प्रदेश भर में आंदोलन किए थे। इस कानून का ड्राफ्ट तैयार किया गया था तब अधिकारियों और कर्मचारियों में इस कानून के प्रावधानों को लेकर नाराजगी थी। तब ये चर्चा थी कि ब्यूरोक्रेट्स और कार्मिक भी नहीं चाहते थे कि प्रदेश में इस तरह का कानून आए जो पूरी तरह से कार्मिकों के खिलाफ हो।
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