नई दिल्ली। अदालत परिसरों में अब दलालों की भूमिका कतई खत्म हो जाएगी। सोमवार को लोकसभा में अधिवक्ता संशोधन विधेयक, 2023 को मंजूरी प्रदान कर दी गई। राज्यसभा में यह विधेयक पिछले मानसून सत्र में ही पारित हो गया था। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा भी कि देश की अदालतों में ऐसे व्यक्तियों की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए।

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शीतकालीन सत्र में संसद के निचले सदन द्वारा पारित यह पहला विधेयक

 

सोमवार से शुरू हुए शीतकालीन सत्र में संसद के निचले सदन द्वारा पारित यह पहला विधेयक है। लोकसभा ने विधेयक पर विस्तृत चर्चा और विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के जवाब के बाद ध्वनिमत से इसे स्वीकृति प्रदान की। विधेयक में प्रविधान है कि प्रत्येक हाई कोर्ट और जिला जज दलालों की सूची बनाकर उन्हें प्रकाशित कर सकते हैं ताकि लोग सावधान रहें।

लोकसभा में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए मेघवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने यह तय किया है कि उन औपनिवेशिक कानूनों को निरस्त किया जाएगा जो अनुपयोगी हो चुके हैं।

उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार में 1486 औपनिवेशिक कानून समाप्त कर दिए हैं जबकि संप्रग सरकार के 10 साल के कार्यकाल में एक भी ऐसा कानून खत्म नहीं किया गया। कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने विधेयक पर लोकसभा में चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि छोटी अदालतों में छोटे-मोटे दलालों के खिलाफ पहल करने के साथ-साथ केंद्र को बड़ी मछलियों को पकड़ने के लिए भी प्रविधान करना चाहिए।

दलालों से मिलेगी मुक्ति

 

उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस विधेयक के समर्थन में है लेकिन जटिल विधिक प्रक्रिया और सामाजिक असमानता के कारण दलाल पैदा होते हैं। भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि अदालतों में दलालों के चंगुल में सबसे अधिक गांव के अनपढ़, अशिक्षित लोग फंसते हैं।

उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री ने 'स्वच्छता' अभियान चलाया है तो न्यायपालिका में भी इस तरह की स्वच्छता बनाए रखने की जरूरत है। उन्होंने इस विधेयक को अदालत परिसरों में दलालों की पहचान करने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम करार दिया।