रोहिणी जेल में कैदियों में बीच गोगी गिरोह के बदमाशों की बढ़ रही संख्या को देखते हुए टिल्लू को तिहाड़ जेल लाया गया। जेल प्रशासन यह मानकर चल रहा था कि रोहिणी के मुकाबले टिल्लू की सुरक्षा तिहाड़ में ज्यादा महफूज रहेगी।

तब किसी को नहीं पता था कि यहां भी टिल्लू का गोगी गिरोह के बदमाशों से पीछा नहीं छूटेगा और यह उसके लिए आखिरी जेल साबित होगी। टिल्लू को किस जेल में रखा जाए, इसे लेकर जेल प्रशासन द्वारा बरती गई लापरवाही पर गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं।

गोगी-टिल्लू गैंग के बीच पहले भी हो चुका है खूनी संघर्ष

टिल्लू व गोगी गिरोह के बीच प्रतिद्वंद्विता कोई नई बात नहीं है। दोनों गिरोह के बीच कई बार खूनी संघर्ष हो चुका है। एक दूसरे के जानी दुश्मन गिरोह के बदमाशों को जेल प्रशासन ने एक जेल और वह भी एक ही हाई रिस्क सिक्योरिटी वार्ड में क्यों रखा, इस पर सवाल उठ रहे हैं।

नियमों के मुताबिक खतरनाक कैदियों के मामले में जेल का निर्धारण करने से पहले प्रशासन को कई बातों पर विचार करना होता है। इसमें सबसे पहली व अनिवार्य शर्त इस बात की होती है कि जिस जेल में कैदी को रखा जा रहा है, वहां उसके विरोधी गिरोह के बदमाश तो बंद नहीं हैं।

टिल्लू के मामले में जेल प्रशासन ने इस नियम की पूरी तरह अनदेखी कर दी। जेल प्रशासन के अनुसार टिल्लू की हत्या में जिन सुओं का आरोपितों ने इस्तेमाल किया, वे सभी जेल के भीतर बनाए गए थे।

तिहाड़ पहुंचने पर दुश्मनों ने शुरू किया होगा ये काम

आशंका है कि आरोपितों ने जेल के भीतर सुए बनाने तभी शुरू किए होंगे जब टिल्लू तिहाड़ जेल पहुंचा होगा। सुओं के निर्माण में लोहे का इस्तेमाल किया गया। यह लोहा जेल की ग्रिल को काटकर बनाया गया, यानि आरोपितों के पास लोहे के ग्रिल काटने के औजार थे। बड़ा प्रश्न है कि आखिर यह औजार आरोपितों तक कैसे पहुंचा।

रोजाना तलाशी फिर भी क्यों नहीं चला पता

आम वार्ड व हाई रिस्क सिक्योरिटी वार्ड के बीच एक प्रमुख अंतर यह है कि हाई रिस्क सिक्योरिटी वार्ड में तलाशी रोजाना ली जाती है। यहां तलाशी की जिम्मेदारी जेलकर्मियों के साथ तमिलनाडु पुलिस के जिम्मे होती है।

साधारण वार्ड के विपरीत हाई रिस्क सिक्योरिटी वार्ड में प्रवेश करने वाले सभी कैदियों को प्रत्येक बार तलाशी की प्रक्रिया से गुजरना होता है। यदि ग्रिल काटने व सुए का इंतजाम बाहर से किया गया तो प्रश्न है कि आखिर यह तलाशी प्रक्रिया के दौरान पकड़ में क्यों नहीं आया। साथ ही यदि सेल के भीतर ही ये औजार या सुए बनाए गए तो जेलकर्मियों की नजर इनपर क्यों नहीं पड़ी।

प्रिंस तेवतिया की हत्या के बाद भी नहीं लिया सबक

तिहाड़ में एक महीने के भीतर कुख्यात बदमाश लारेंस बिश्नोई के साथी प्रिंस तेवतिया की हत्या के बाद टिल्लू की हत्या से स्पष्ट है कि जेल प्रशासन ने प्रिंस की हत्या से कोई सबक नहीं लिया। एक महीने के भीतर देश की सबसे बड़ी जेल परिसर में दो कैदियों की हत्या से ऐसा लग रहा है मानों जेल में कैदियों पर जेलकर्मियों का नियंत्रण नहीं रहा। कैदी जब वारदात अंजाम देना चाहते हैं, दे रहे हैं।

खास बात यह है कि प्रिंस व टिल्लू की हत्या के तौर तरीके एक जैसे हैं। प्रिंस पर भी घात लगाकर हमला किया गया था। प्रिंस की हत्या में भी सुओं का इस्तेमाल किया गया था। जेल संख्या तीन में भी प्रिंस व आरोपित एक दूसरे के विरोधी होने के बाद भी एक ही जेल में बंद थे। टिल्लू के मामले में भी ऐसा ही है। प्रिंस की भी हत्या सुबह के समय ही हुई थी।