चुनावों में रेवड़ी संस्कृति रोकने की आवाज तो खूब उठती है, मगर जब सियासी मैदान में सत्ता की दौड़ शुरू होती है तो मुफ्त वादों की झड़ी लगाने की होड़ में कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं रहना चाहता।

कर्नाटक विधानसभा का चुनाव इसकी ताजा मिसाल है जहां राज्य की भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार से लेकर सत्ता विरोधी माहौल के तमाम दावों के बावजूद चुनावी बाजी पलटने के लिए प्रमुख विपक्षी पार्टियों को कई मुफ्त वादों का सहारा लेना पड़ा रहा है, तो भाजपा को भी अपनी सत्ता बचाने के लिए आरक्षण के लुभावने दांव चलने से लेकर गरीब परिवार की महिलाओं को हर महीने 3000 रुपए नगद देने का वादा करने से कोई गुरेज नहीं है।

कर्नाटक में भाजपा के चुनाव अभियान को रफ्तार देने के लिए बूथ कार्यकर्ताओं से हाईब्रिड संवाद के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुफ्त की चुनावी रेवड़ियों के गंभीर परिणामों की ओर इशारा कर चुनावों में हावी होती इस संस्कृति को लेकर एक बार फिर चिंता जरूर जताई है, लेकिन राजनीतिक वास्तविकता यह भी है कि चाहे लोकसभा का चुनाव रहा हो या राज्यों के चुनाव तमाम पार्टियां सरकारी खजाने के नफा-नुकसान की परवाह किए बिना लुभावने वादों का दांव खेलने से बाज नहीं आ रही हैं।

कर्नाटक चुनाव में सियासी वाद-विवाद अपनी जगह है, मगर इस हकीकत की अनदेखी नहीं की जा रही कि सूबे के तीनों प्रमुख दलों कांग्रेस, भाजपा और जेडीएस के लुभावने वादे अपने हिसाब से चुनावी विमर्श को प्रभावित कर रहे हैं। इस लिहाज से कांग्रेस की ओर से गारंटी के रूप में किए गए चार मुफ्त वादों की कर्नाटक चुनाव में खूब हलचल है।

कांग्रेस के लिए बेहद अहम है कर्नाटक चुनाव 

कर्नाटक का चुनाव सूबे ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के मजबूत विपक्षी विकल्प बने रहने के लिए बेहद अहम है और इसीलिए पार्टी भाजपा की बोम्मई सरकार के खिलाफ 40 भ्रष्टाचार का मुद्दा बनाने में सफलता के बाद भी चुनावी बाजी पलटने में कोई कसर न रह जाए इसका जोखिम नहीं लेना चाहती।

जेडीएस ने भी कई वादों की लगाई छड़ियां

कर्नाटक में अपनी सियासी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए जेडीएस ने भी मुफ्त वादों की गंगा में हाथ धोने के लिए कई रेवडियों की घोषणा कर रखी है। इसमें वरिष्ठ नागरिकों का पेंशन 1200 से बढ़ाकर 5000 रुपए महीना करने, हाई स्कूल छात्राओं को मुफ्त साइकिल, तो स्नातक छात्राओं को मुफ्त इलेक्ट्रिक स्कूटर जैसे वादे किए गए हैं।