कर्नाटक (Karnataka) के खनन घोटालों के केंद्र में रहे रेड्डी बंधुओं में से एक जर्नादन रेड्डी (Janardhana Reddy) फिर राजनीतिक सुर्खियों में हैं. उन्होंने नई राजनीतिक पार्टी कल्याण राज्य प्रगति पक्ष लांच कर 2023 कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) लड़ने की घोषणा कर दी है. साथ ही बेल्लारी जिले की सीमा से लगे कोप्पल से अपनी उम्मीदवारी भी घोषित कर दी है. गौरतलब है कि खनन घोटाले (Mining Scam) से जुड़े मामलों में अदालती कार्यवाही का सामना कर रहे जनार्दन रेड्डी का अपने गृह जिले बेल्लारी (Ballari) में प्रवेश प्रतिबंधित है. जर्नादन रेड्डी बेल्लारी से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कर 1999 लोकसभा चुनाव के दौरान सुर्खियों में आए. 1999 में बेल्लारी लोकसभा सीट से सुषमा स्वराज (Sushma Swaraj) चुनावी समर में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को टक्कर दे रही थीं और जर्नादन रेड्डी अपने भाई के साथ उनके चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभाले हुए थे. हालिया समय में उनके भाई करुणाकर रेड्डी हरपनहल्ली से भाजपा के विधायक हैं और उनके करीबी सहयोगी बी श्रीरामुलु बोम्मई सरकार में मंत्री हैं. करुणाकर रेड्डी के और भी कई करीबी राजनीति से जुड़े हैं. कुछ तो सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) से नजदीकी संबंध रखते हैं.
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सुषमा स्वराज के चुनाव ने दी बड़ी राजनीतिक पहचान
1999 के बेल्लारी लोकसभा चुनाव में सुषमा स्वराज के साथ ने जनार्दन रेड्डी को जिले की राजनीति में एक प्रमुख चेहरे के रूप में उभारा था. इसके बाद वह 2004 के चुनावों में पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में से भी एक थे, जिसमें किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. 2006 में जर्नादन रेड्डी के बेहद करीबी श्रीरामुलु जेडीएस-बीजेपी सरकार में मंत्री बनाए गए थे. उसी साल जनार्दन रेड्डी भी भाजपा उम्मीदवार के रूप में विधान परिषद के लिए चुने गए थे. 2008 के चुनावों में भी जनार्दन रेड्डी बीजेपी के प्रमुख प्रचारकों में से एक थे. इस चुनाव में बीजेपी बहुमत के लिहाज से कुछ सीटों से पीछे रह गई थी. ऐसे में जर्नादन रेड्डी ने निर्दलियों का समर्थन सुनिश्चित कर भाजपा की सरकार बनाने में महती भूमिका निभाई थी. यही नहीं, 'ऑपरेशन कमल' के पीछे भी एक दिमाग उनका था. इस ऑपरेशन के तहत गैर बीजेपी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े विधायकों ने इस्तीफा दे दिया. फिर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी. इन तमाम राजनीतिक करिश्मों की वजह से जनार्दन रेड्डी येदियुरप्पा सरकार में मंत्री बने और मुख्यमंत्री के प्रभावशाली सलाहकार के रूप में उभरे. हालांकि जल्द ही वह बागी भी हो गए. उनका आरोप था कि उन्हें वह राजनीतिक जिम्मेदारियां और ताकत नहीं मिली जिसके वह हकदार थे. येदियुरप्पा सरकार और बाद में उनके उत्तराधिकारियों क्रमशः सदानंद गौड़ा और जगदीश शेट्टार सरकार को अस्थिर करने के प्रयासों में रेड्डी केंद्र में रहे.