पर्यावरण के बिगड़ते संतुलन की वजह से दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज जैसी कई गंभीर समस्याएं खड़ी हो रही हैं. इन समस्याओं से निपटने और पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए कई सरकारें, संगठन और कई व्यक्ति अपने-अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं.इसी तरह राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के रायसिंह तहसील के रहने वाले प्रोफेसर श्याम सुंदर ज्याणी ने साल 2003 से राजस्थान जैसे मरुस्थल वाले इलाके में 'पारिवारिक वानिकी' कॉन्सेप्ट के जरिए पौधरोपण करने की मुहिम छेड़ रखी है. वो 19 साल से पर्यावरण को बचाने के लिए पौधरोपण का काम कर रहे हैं.

राजस्थान जैसे रेगिस्तानी इलाके में जहां पानी की गंभीर समस्या है उस क्षेत्र में पौधरोपण करना और इन पेड़ों को पूरी तरह से विकसित कर वृक्ष में बदल देना एक बहुत बड़ी चुनौती है. लेकिन जब पेड़ को आपके परिवार का सदस्य ही मान लिया जाए फिर तो आपको उसे बचाने के लिए हर संभव प्रयास करने की जरूरत है. बीकानेर के कॉलेज में समाजशास्त्र के प्रोफेसर श्याम सुंदर ज्याणी ने कुछ इसी तरह कई लोगों को पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया. बिना किसी सरकारी मदद के अपने स्तर पर पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने के लिए ये काम शुरू किया. जिसके लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार भी मिल चुका है.

19 सालों से पौधारोपण करने का काम कर रहे हैं.

साल 2003 में की शुरुआत

प्रोफेसर ज्याणी बताते हैं, "मैंने साल 2003 में इसकी शुरुआत की थी. जिसमें कॉलेज में ही पौधरोपण का काम किया. लेकिन मुझे लगा कि हमें आस-पास के इलाके में भी करना चाहिए. इस सिलसिले में आस-पास के गांवों में जाकर पर्यावरण को लेकर लोगों की जागरूकता के बारे में जाना. इसके बाद हमने पौधरोपण की शुरुआत की." वो कहते हैं कि पौधरोपण एक इवेंट नहीं है, यह एक पूरा प्रोसेस है जिसमें पौधा लगाने से लेकर उसके बड़े हो जाने तक उसकी देखभाल करनी होती है.

रेगिस्तानी इलाके में पौधरोपण एक बड़ी चुनौती

राजस्थान के रेगिस्तान वाले इलाके में पौधरोपण करना या इसके विषय में कल्पना करना भी एक बहुत बड़ी चुनौती है. वो कहते हैं, "परिवार में हम कई तरह की बातचीत करते हैं लेकिन पर्यावरण या पेड़ हमारी बातचीत का हिस्सा नहीं है. जब तक वो हमारी दैनिक बातचीत का हिस्सा नहीं होगा. उसके लिए कुछ करने की बात नहीं आ पाएगी." इसके लिए उन्होंने लोगों को जागरूक करने के लिए 'पारिवारिक वानिकी' कॉन्सेप्ट लोगों तक पहुंचाने का काम किया. जिससे लोगों में पर्यावरण के प्रति गहरी समझ विकसित हो सके और पर्यावरण की रक्षा की जिम्मेदारी को लोग समझ सकें. इसे जमीन पर उतारने के लिए उन्होंने अपने स्टूडेंटस् के साथ मिलकर प्रयास किया. उनका ये प्रयास सफल रहा और आस-पास के इलाके में पहले की तुलना में काफी मात्रा में हरियाली की बढ़त हुई. इस तरह उन्होंने इस कॉन्सेप्ट को आगे बढ़ाया. अब कई शिक्षक संगठनों के लोग और लाखों परिवार उनकी इस मुहिम में शामिल हो गए हैं.

साल 2006 में ‘पारिवारिक वानिकी’ की शुरुआत की.

क्या है 'पारिवारिक वानिकी' तकनीक

'पारिवारिक वानिकी' के विषय में वो बताते हैं कि इसके तहत परिवारों को पेड़ों से जोड़ने का काम किया जाता है. साल 2006 में उन्होंने ये कॉन्सेप्ट बनाया था. इसमें ग्रामीणों से आग्रह किया जाता है कि वे अपने घर में फलदार पेड़ जरूर लगाएं. उस पेड़ की परिवार के सदस्य की तरह देखभाल करें. वो कहते हैं कि इसके दो बड़े फायदे हैं. पहला ये कि आने वाले समय में फल मिलने की उम्मीद से परिवार पेड़ को पाल लेगा. दूसरा ये कि पेड़ के होने से चिड़िया, तितली या मधुमक्खी जैसे जीव आएंगे. जिससे परिवार में बच्चे पर्यावरण को ज्यादा अच्छे से अनुभव कर सकेंगे और उसकी जरूरत को समझ सकेंगे. इससे और भी कई लाभ हो सकते हैं जैसे फलों से हमारी थाली में प्रोटीन भी जुड़ जाएगा. जो कुपोषण की समस्या को हल कर सकता है. भुखमरी की समस्या को हल कर सकता है. साथ ही फलों से आर्थिक तौर पर भी मजबूती मिल सकती है.

अब तक इतने गांवों में लगा चुके हैं पेड़

प्रोफेसर ज्याणी ने बीते साल महात्मा गांधी को उनके 150वें जन्मदिन पर एक अनोखी श्रृद्धांजलि देने के लिए एक पौधरोपण अभियान चलाया था. इसमें उन्होंने कई स्थानीय स्कूलों को शामिल किया था. जिसमें उन्होंने 'पारिवारिक वानिकी गांधी 150 अभियान' के तहत 150 स्कूलों में 150 'गांधी संस्थागत फल वन' विकसित करने का काम किया था.

उन्होंने हिमतसर नाम के गांव में पेड़ लगाने का एक अभियान चलाया था. जिसमें कई ग्रामीणों ने उनकी बात को स्वीकार किया और बड़ी संख्या में पेड़ लगाए. इस अभियान के अंतर्गत लगभग 2500 से अधिक गांवों में लाखों की संख्या में पेड़ लगाए जा चुके हैं.

उनका मानना है कि प्रकृति हमसे बड़ी वैज्ञानिक है इसलिए प्रकृति ने जिस इलाके के लिए जो पौधा तय किया है हमें वो ही लगाना चाहिए. जैसे हमारे यहां उत्तर भारत में पीपल की पूजा होती है. लेकिन प्रकृति ने जिस क्षेत्र में उसको पैदा किया है वो वहीं के लिए पवित्र है. क्योंकि प्रकृति ने अलग-अलग जगह के लिए अलग-अलग प्रजाति के पेड़ों को निर्धारित किया है. राजस्थान में कांटों वाले पेड़ हैं. बर्फीले प्रदेशों में अलग हैं. इसलिए हमें इलाके के अनुसार ही पेड़ लगाने चाहिए.

पौधारोपण के बाद उसके पेड़ बनने की जिम्मेदारी निभाते हैं.

पौधरोपण के बाद शुरू होती है जिम्मेदारी

वो बताते हैं कि पौधरोपण कर देने के बाद ही असल जिम्मेदारी बनती है. उसे तब तक जिंदा रखने की कोशिश की जाती है, जब तक वह पूरी तरह विकसित नहीं हो जाता है. उनके द्वारा लगाए जाने वाले पेड़ों में वो सभी पौधों की देखभाल करते हैं. यदि कोई पौधा किसी कारण मर जाता है तो उसे रिप्लेस भी करते हैं. जिससे कि जिस जगह, जितने पौधे लगाए गए हैं उतनी ही संख्या में विकसित हों. वो कहते हैं की पेड़ लगाने के बाद हमें प्लास्टिक का उपयोग भी नहीं करना चाहिए. क्योंकि ये ठीक वैसा है जैसे शराब पीकर मंत्र पढ़ना. वो कई सालों से प्लास्टिक का उपयोग नहीं करते हैं.

काम के लिए मिले ये सम्मान

प्रोफेसर ज्याणी को अपने पर्यावरण के लिए किए जाने वाले काम के चलते, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा सम्मानित किया जा चुका है. साल 2012 में उन्हें इस काम के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा उन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा भूमि संरक्षण का सर्वोच्च सम्मान भी मिल चुका है. 17 जून 2021 को श्याम सुंदर ज्याणी को 'लैंड फॉर लाइफ अवॉर्ड 2021' का विजेता घोषित किया गया.

उन्होंने 'पारिवारिक वानिकी' को आगे बढ़ाने वाले व्यक्ति, जो 'पारिवारिक वानिकी' की मुहिम को गोद ले और उसे आगे बढ़ाने में मदद करे. उसे राष्ट्रपति द्वारा मिला मेडल समर्पित करने की बात कही है. वो लोगों से पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनने की अपील करते हैं. उनका कहना है कि जो पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार नहीं है. वो अपने बच्चों के प्रति भी गैर-जिम्मेदार है. क्योंकि जो अपने बच्चों के स्वस्थ भविष्य के लिए चिंतित नहीं है. वह व्यक्ति जिम्मेदार नागरिक कैसे हो सकता है.