सबसे बड़ा सवाल की आखिर इन टावर्स को गिराया क्यों जा रहा है? अगर ये टावर भ्रष्टाचार की बुनियाद पर बनाए गए तो 32 मंजिल की इमारत खड़ी कैसे हो गई? बिल्डर ने नियमों को कैसे तोड़ा? किस किस कों खिलाया रुपया

अरबों की लागत से बना टावर कुतुम मीनार से भी ऊंचा था 

पर खास बात यह ही की इतना बड़ा भ्रष्टाचार हुवा केस.? निरक्षण अधिकारी सरकारी लोग बिल्डर की मिली भगत ये तो कई लोग की नजरो के सामने ट्विन टावर बना और खड़ा भी हुवा इस के करीबन आधे से जायदा फ्लैट भी बिक हो चुके थे 

पर बहुत कुछ गलत नियम तरीके से इस का निर्माण किया गया था नियमों का उलधन कर के इसे तैयार किया गया था

नोएडा के सेक्टर 93ए में स्थित सुपरटेक ट्विन टावर जमींदोज हो चुके हैं। दोपहर ठीक 2:30 बजे तेज धमाके के साथ 32 मंजिला पूरी इमारत मिट्टी में मिल गई। इस गगनचुंबी इमारत को ढहने में महज आठ सेकेंड का वक्त लगा। भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ी इस इमारत को 2014 में हाईकोर्ट ने तोड़ने का आदेश जारी किया। 

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सेक्टर-93ए स्थित सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के ट्विन टावर को गिराने के लिए इसमें 3700 किलो विस्फोटक लगाया गया था। इमारत से करीब 70 मीटर दूर रिमोट रखा गया था। दोपहर ठीक 2:30 बजे रिमोट की बटन दबाई गई और तेज धमाके के साथ पूरी इमारत मिट्टी में मिल गई। इसके बाद कई मीटर तक धूल का गुबार छा गया। 

टावर गिराने में कितना आया खर्च?

200 करोड़ से ज्यादा की लागत में बने ट्विन टावर्स को गिराने में करीब 20 करोड़ का खर्च आने की बात कही जा रही है। यह रकम भी बिल्डर्स से ही वसूली जाएगी। मौजूदा समय में इमारत की कीमत करीब 800 करोड़ रुपये आंकी गई थी। 

2014 में हाईकोर्ट ने ट्विन टावर तोड़ने का आदेश जारी किया। शुरुआती जांच में नोएडा अथॉरिटी के करीब 15 अधिकारी और कर्मचारी दोषी माने गए। इसके बाद एक हाई लेवल जांच कमेटी ने मामले की पूरी जांच की। इसकी जांच रिपोर्ट के बाद अथॉरिटी के 24 अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।  

32 मंजिल की इमारत खड़ी कैसे हो गई?

कहानी 23 नंवबर 2004 से शुरू होती है। जब नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर-93ए स्थित प्लॉट नंबर-4 को एमराल्ड कोर्ट के लिए आवंटित किया। आवंटन के साथ ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल तक मकान बनाने की अनुमति मिली। दो साल बाद 29 दिसंबर 2006 को अनुमति में संसोधन कर दिया गया। नोएडा अथॉरिटी ने संसोधन करके सुपरटेक को नौ की जगह 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की अनुमति दे दी। इसके बाद अथॉरिटी ने टावर बनने की संख्या में भी इजाफा कर दिया। पहले 14 टावर बनने थे, जिन्हें बढ़ाकर पहले 15 फिर इन्हें 16 कर दिया गया। 2009 में इसमें फिर से इजाफा किया गया। 26 नवंबर 2009 को नोएडा अथॉरिटी ने फिर से 17 टावर बनाने का नक्शा पास कर दिया। 

दो मार्च 2012 को टावर 16 और 17 के लिए एफआर में फिर बदलाव किया। इस संशोधन के बाद इन दोनों टावर को 40 मंजिल तक करने की अनुमति मिल गई। इसकी ऊंचाई 121 मीटर तय की गई। दोनों टावर के बीच की दूरी महज नौ मीटर रखी गई। जबकि, नियम के मुताबिक दो टावरों के बीच की ये दूरी कम से कम 16 मीटर होनी चाहिए। 

अनुमति मिलने के बाद सुपरटेक समूह ने एक टावर में 32 मंजिल तक जबकि, दूसरे में 29 मंजिल तक का निर्माण भी पूरा कर दिया। इसके बाद मामला कोर्ट पहुंचा और ऐसा पहुंचा कि टावर बनाने में हुए भ्रष्टाचार की परतें एक के बाद एक खुलती गईं। ऐसी खुलीं की आज इन टावरों को जमींदोज करने की नौबत आ गई। 

जब हाई कोर्ट ने 2014 में टावर गिराने का आदेश दे दिया था तो इसे गिराने में आठ साल क्यों लग गए?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुपरटेक सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट में सात साल चली लड़ाई के बाद 31 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के अंदर ट्विन टावर को गिराने का आदेश दिया। इसके बाद इस तारीख को आगे बढ़ाकर 22 मई 2022 कर दिया गया। हालांकि, समय सीमा में तैयारी पूरी नहीं हो पाने के कारण तारीख को फिर बढ़ा दी गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत 28 अगस्त को दोपहर ढाई बजे ट्विन टावर को गिरा दिया गया... 

ट्विन टावर को गिराए जाने के बाद एक चरण का ही काम पूरा हुआ है। इमारतों को गिराए जाने से करीब 80 हजार टन मलबा निकलेगा, जिन्हें साफ करने में कम से कम 3 महीने का समय लगेगा। पूरे इलाके में धूल की एक मोटी परत जम गई है, जिन्हें युद्धस्तर पर साफ किया जाना है। 

 धमाके के साथ दोनों इमारतों को गिरा दिया गया है। इसके साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ एक दशक तक चले लंबे संघर्ष में जीत का वह पल आ गया, जिसका सैकड़ों फ्लैट खरीदार लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। बटन दबाते हुए इमारत में लगाए गए विस्फोटकों में धमाका हुआ और टावर 'पानी के झरने' की तरह नीचे गिरे तो धूल का गुबार आसमान तक छा गया।

टावर्स को 15 सेकंड से भी कम समय में 'वाटरफॉल इम्प्लोजन' तकनीक से ढहा दिया गया। फिलहाल कहीं से किसी तरह के नुकसान की खबर नहीं है। धूल का गुबार हटने के बाद ही आसपास की इमारतों की जांच होगी और यह देखा जाएगा कि क्या कहीं नुकसान भी हुआ है। इन इमारतों को पहले ही खाली करा लिया गया था। आसपास की सड़कें भी पूरी तरह बंद थीं और लॉकडाउन के बाद पहली बार इस तरह का सन्नाटा इलाके में देखा गया। नोएडा एक्सप्रेस-वे पर भी यातायात रोक दिया गया था।