भगवान पिप्पलेश्वर महादेव मंदिर के पाटोत्सव पर आयोजित श्री भक्तमाल कथा में शुक्रवार को वृंदावन के संत चिन्मयदास महाराज ने श्री वृंदावन धाम का महत्व बताया तो राधा रानी के जन्म की कथा भी सुनाई।
उन्होंने अपने सुमधुर भजनों से श्रद्धालुओं को नाचने पर मजबूर कर दिया। कथा के दौरान संत चिन्मयदास महाराज ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी दो शरीर हैं लेकिन एक प्राण हैं। उन्होंने कहा कि कोटि चिंतामणि मूल्यवान हैं जिससे सब कुछ खरीदा जा सकता है, लेकिन सैकडों कोटि से अच्छी वृंदावन की रज है।
उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण कहो या वृंदावन दोनो बराबर है। उन्होंने कहा कि यदि तन से वृंदावन का वास नहीं हुआ तो वहां की रजकण को अपने माथे पर लगाया करें। महाराज श्री ने कहा कि ह्दय में विश्वास होना चाहिए, बिन विश्वास भक्ति नहीं हो सकती। महाराज श्री ने कहा कि वृंदावन के रसिकजनो के चरणरज से मुक्ति मिल जाती है, वृंदावन के बाहर राजा बनकर रहने से अच्छा है वृंदावन में भिखारी बनकर रहे। हम बिहारी के हैं और बिहारी हमारे हैं, यह भाव होना चाहिए। संत चिन्मयदास महाराज ने कहा कि कुसंगति छोड भगवान का सुमिरन करें, उन्होंने हरिराम जी व्यास की कथा का भी वर्णन किया और राधा रानी के जन्म की मनमोहक कथा का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि घर के ठाकुर जी प्रसन्न हो जाए, इसके लिए भक्त नामावली का पाठ करें, भगवान के भक्तों का नाम जपने से ठाकुर जी प्रसन्न हो जाते हैं। महाराज श्री ने कहा कि हम क्या कर रहे हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं हम क्यों कर रहे हैं यह महत्वपूर्ण है। महाराज जी ने कहा कि राधा रानी ने शुक्ल पक्ष की अष्टमी को चित्रादेवी के गर्भ से जन्म लिया और अपना वृहद स्वरूप के दर्शन भी दिए। पिप्पलेश्वर महादेव मंदिर में शंकर जी का श्रंगार शरद पूर्णिमा को राधा रानी के स्वरूप में करें। इस दौरान कई भजनों की प्रस्तुति दी गई जिस पर भक्त भाव विभोर होकर नाचते रहे और राधा रानी, श्रीकृष्ण के जयकारें लगाते रहे। मंदिर समिति के अध्यक्ष भारत भूषण अरोडा ने बताया कि आरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया। श्री भक्त माल की कथा का आनंद लेने दूर दराज से लोग पहुंच रहे हैं और धर्मलाभ प्राप्त कर रहे हैं।