बून्दी ब्रह्माकुमारीज़ सेवा केंद्र के तत्वाधान में तिरुपति विहार स्थित प्रभु प्राप्ति भवन में चल रहे "पांच दिवसीय मेडिटेशन शिविर"कार्यक्रम"बढ़ते कदम खुशियों की ओर" के तीसरे दिन "संबंधों में मधुरता"विषय पर प्रकाश डालते हुए आदरणीय तुलसी दीदी जी ने अपने संबोधन में बताया संबंध आपस में दो व्यक्तियों का कनेक्शन है लेकिन वर्तमान समय हम देखें क्या इस कनेक्शन में मधुरता है मनुष्य सामाजिक प्राणी है उसे जीने के लिए कोई ना कोई तो चाहिए। अकेलापन या आपसी संबंधों में आया हुआ तनाव इंसान को जीवन के सुख से दूर कर देता है लेकिन छोटी-छोटी बातें, मनमुटाव, एक दूसरे को सही तरीके से ना समझ पाने के कारण इंसान इंसान से दूर होता जा रहा है। हमारे आपसी संबंध बिगड़ रहे हैं और फिर इंसान को जीना मुश्किल लग रहा है क्योंकि प्रेम आत्मा का वास्तविक गुण है और हर व्यक्ति यही चाहता है कि मेरे प्रति सभी का व्यवहार प्रेमपूर्वक और सम्मानपूर्वक हो। लेकिन अब हमें सोच बदलनी होगी हम लेने के बारे में नहीं बल्कि प्यार और सम्मान देना सीखें गलतियां माफ करना सीखें तभी हमारे संबंध मधुर हो सकते हैं। हम स्पष्ट रूप से समझना होगा हमारा संबंध किनके साथ है और उसे कैसे हम ठीक कर सकते हैं मधुर बना सकते हैं। संबंधों को मजबूत बनाना है तो एक दो की विशेषताओं को देखें संबंधों को मधुर बनाने के लिए केयरिंग और शेयरिंग जरूरी है।

. हमारा संबंध स्वयं के साथ कैसा है? क्या हम स्वयं की केयर करते हैं? स्वयं को खुश करने के लिए, मोटिवेट करने के लिए, स्वयं को शांत रखने के लिए हम क्या कर रहे हैं? इसके लिए सबसे पहले जरूरी है हम जो हैं जैसे हैं हम स्वयं को स्वीकार करें, चाहे हमें अपनी कमियां भी पता चलती हैं लेकिन उसके लिए गिल्ट कॉन्शियस नहीं होना है अपनी कमियों को सुधारते जाएं अपने आप को करेक्ट करते जाएं और अपने आप को इंप्रूव करें। कुछ समय एकांत में बैठ स्वयं का हाल-चाल पूछे। अपने को समझने की कोशिश करें।

अपनों को समझने की कोशिश करें। थोड़ा सा अपने दिल को विशाल करें। इस दुनिया में भगवान के सिवाय और कोई परफेक्ट नहीं है हम खुद भी नहीं हर एक में सुधार की कोई ना कोई गुंजाइश है और हम स्वयं को सुधार सकते हैं जब-जब दूसरों को सुधारने की कोशिश करते हैं या चाहना रखते हैं तो आपसी संबंधों में दूरियां आती हैं और हम अपनों से ही दूर हो जाते हैं। एक तो कुछ समझे समझाए नहीं उनकी अपनी क्षमता है वह क्या करना चाहते हैं। उनके अपने कुछ लक्ष्य हैं ।वह क्या बनना चाहते हैं ।यह समझना जरूरी है। लेकिन हम अपनी इच्छा के मुताबिक जब उनसे कराना चाहते हैं और वह क्षमता उनकी नहीं है तो हम बहुत जल्दी उनसे नाराज हो जाते हैं। वह जो है जैसे हैं पहले संबंध में एक दो को स्वीकार करना जरूरी है तभी संबंध मधुर बनेंगे संबंधों में तकलीफ तभी होती है जब हम एक दूसरे को समझ नहीं पाते। सच्चा संबंध आपको संभालता है। आपकी विशेषता को उभरता है तो ऐसे ही संबंधों को हमें विकसित करना होगा हमें लेने की नहीं बल्कि देने की भावना अपने दिल में अपनानी होगी तभी हमारे संबंध मधुर बन सकते हैं

सभी संबंधों को निभाने के लिए जो प्यार शक्ति शांति धैर्य यह सब गुण चाहिए वह एक परमपिता से संबंध होने से ही प्राप्त होते हैं तभी हम स्वयं को शांत और शक्तिशाली बन सकते हैं और दूसरों को भी धैर्यवत रहकर उनको वह जो है जैसे ही स्वीकार कर सकते हैं लेकिन वर्तमान समय में हमारा रिश्ता परमात्मा के साथ स्वार्थ का हो गया कभी समय था जब हम मानते थे कि परमात्मा ही सब कुछ है वही सबसे बड़ी शक्ति है वही सब कुछ संभाल रहे हैं लेकिन समय के साथ हम बदले और हमने कहना शुरू किया परमात्मा भी तो है। और फिर जब जरूरत महसूस हुई तब हमने परमात्मा को याद किया और दूसरों को भी कहा की जरूरत पड़ने पर जब भी जरूरत हो तो भगवान को याद करो और अब समय है कि हम सिर्फ स्वार्थ के लिए भगवान को याद करते हैं और जितना काम उतना दाम परमात्मा के साथ भी संबंध नहीं बल्कि बिजनेस कर रहे हैं। परमपिता के साथ संबंध में गिरावट आने से हमारे स्वयं के साथ प्रकृति के साथ और अन्य आत्माओं के साथ संबंधों में भी स्वार्थ आ गया। अब समय है जब परमात्मा सृष्टि पर आकर हम सभी को सच्चे निस्वार्थ स्नेह से भरपूर कर रहे हैं। हमारा संबंध परमपिता से जीतना गहरा होता जाएगा हमारे बाकी सब संबंध सहज ही मधुर होते समय जाएंगे ।

ब्रह्माकुमारी तुलसी दीदी जी ने कार्यक्रम के अंत में सभी को मेडिटेशन के द्वारा परमात्मा प्यार की अनुभूति कराई।