राजस्थान के जालौर में छुआछूत को लेकर हुई एक मौत की मौत का मामला चर्चा में हैं. इस मामले को लेकर देशभर में विरोध किए जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी लोग इसके खिलाफ अपना पक्ष रख रहे हैं.सोशल मीडिया पर लोग इस घटना को लेकर अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं और इसी बीच मनुस्मृति का जिक्र भी किया जा रहा है. ट्विटर पर एक हैशटैग भी ट्रेंड कर रहा था, जिसमें लोगों की राय थी कि मनुवाद के चलते उस छात्र की मौत हुई है. ऐसे में सवाल है कि आखिर ये मनुस्मृति क्या है और जब भी दलितों से जुड़े मुद्दे आते हैं तो मनुस्मृति की चर्चा क्यों होती है.

इसके अलावा एक बड़ा वर्ग इसका विरोध करता है, ऐसे में जानते हैं आखिर मनु-स्मृति का विरोध क्यों किया जाता है और जानते हैं इस किताब से जुड़ी हर एक बात… जो आपको जाननी चाहिए…

क्या है मनुस्मृति?

मनुस्मृति को एक धार्मिक ग्रंथ माना जाता है. इसमें धर्म और राजनीति के बारे में बताया गया है. मनुस्मृति में समाज के संचालन के लिए जो व्यवस्थाएं हैं, उनका संग्रह किया गया है. पहले इसमें लिखित श्लोकों की संख्या एक लाख तक बताई जाती है. धीरे-धीरे यह संख्या कम हो गई. वर्तमान में 2694 श्लोक ही प्रमाणिक रुप से उपलब्ध है, जिसे 12 अध्याय में बांटा गया है. इसमें सृष्टि का उत्थान, हिंदू संस्कार विधि, श्राद्ध विधि व्यवस्था, अलग अलग आश्रम की व्यवस्था, विवाह संबधी नियम, महिलाओं के लिए नियम आदि बताए गए हैं.

किस अध्याय में क्या लिखा है?

पहला अध्याय- सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय आदि के बारे में लिखा गया है.

दूसरा अध्याय- आर्यावर्त की सीमा, जलवायु, सोलह संस्कार आदि के बारे में लिखा गया है.

तीसरा अध्याय- गृहस्थ आश्रम में प्रवेश, आठ तरह के विवह, कन्या की पात्रता, श्राद्ध आदि के बारे में लिखा गया है.

चौथा अध्याय- गृहस्थ के लिए नियम, दान आदि के बारे में बताया गया है.

पांचवां अध्याय- इस अध्याय में मांस के सेवन के दोष, बारह शुद्धिकारक, ईमानदारी, स्त्री-पुरुष के संबध के आदर्श रूप के बारे में बताया गया है.

छठा अध्याय- वानप्रस्थ के नियमों के बारे में बताया गया है.

सातवां अध्याय- राजा के धर्म, दंड, मंत्रियों के परामर्श आदि की जानकारी दी गई है.

आठवां अध्याय- राजा के विवाद निपटाने के तरीकों के बारे में लिखा गया है.

नवां अध्याय- स्त्री पुरुष के कर्तव्य, अधिकार, पित्ता का उत्तराधिकारी होने के बारे में लिखा गया है.

दसवां अध्याय- चारों वर्णों के कर्तव्यों के बारे में लिखा गया है.

ग्यारहवां अध्याय- गोवध, मांस सेवन और अन्य पापों के बारे में लिखा गया है.

बारहवां अध्याय- इसमें स्वर्गलाभ, नरक प्राप्ति के बारे में बताया गया है.

जातियों को लेकर क्या लिखा है?

आखिर जाति व्यवस्था को लेकर ही इसकी चर्चा की जाती है. मनुस्मृति में कहा गया है कि ब्रह्माजी ने संसार की रचना की थी. उन्होंने ‘एकोहम्-बहुष्याम’ के विचार की वजह से सृष्टि की रचना की थी. साथ ही इसमें बताया गया है कि ब्रह्माजी के मुख से ब्राह्मण वर्ण निकला, जिसका कार्य अध्ययन करना, यज्ञ करवाना आदि है. वहीं, क्षत्रिय वर्ण ब्रह्माजी की भुजाओं से निकला, जिसका काम रक्षा करना है. वैश्य ब्रह्माजी के पेट से निकला, जिस काम संपूर्ण समजा की पेट पूर्ति करना है और वो सामाजिक कार्य, कृषि करता है. वहीं शूद्र ब्रह्माजी के पैर से उत्पन्न हुए, जिनका काम स्वच्छता बनाए रखना है. हालांकि, कई श्लोक में शूद्र के काम को लेकर किए गए वर्णन का कई लोग विरोध करते हैं.

महिलाओं के लिए क्या लिखा गया है?

मनुस्मृति में महिलाओं के कार्य, उनके कर्म, उनके जीने के तरीके के बारे में बताया गया है, जिसे आज के युग से ठीक नहीं माना जाता है. ऐसे में मनुस्मृति का काफी विरोध होता है, क्योंकि महिलाओं की आजादी, उनके आचरण को लेकर कई ऐसी बातें हैं, जिन्हें आज वाजिब नहीं कहा जा सकता है. जैसे पांचवे अध्याय के 152वें श्लोक में लिखा है- पित्रा भर्त्रा सुतैर्वाअपी नेच्छेद्विरहमात्मन:, एषां हि विरहेण स्त्री गर्ह्रो कुर्यादुभे कुले. जिसका मतलब है- स्त्री को पिता, पति और पुत्र से अलग अकेले कभी नहीं रहना चाहिए. इनसे अलग होकर आजाद रहने वाली स्त्री अपने दोनों पति और पिता के कुल को कलंकित करती हैं.

बीबीसी की एक रिपोर्ट में भी लिखा गया है, ‘एक लड़की हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहनी चाहिए, शादी के बाद पति उसका संरक्षक होना चाहिए, पति की मौत के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर निर्भर रहना चाहिए, किसी भी स्थिति में एक महिला आज़ाद नहीं हो सकती.’