जीवन भले ही साधारण हो परंतु विचार उच्च रहना चाहिए।विचारो का जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है कहा भी गया है जैसी मति वैसी गति।
जीवन में यश कीर्ति सबसे बड़ा आभूषण है।यश के श्रगार के सामने दुनिया के सारे श्रगार फीके है। उक्त उदगार श्रुत संवेगी मुनि आदित्य सागर जी महाराज ने कुन्हाड़ी रिद्धी सिद्धि नगर स्थित श्री चंद्र प्रभु दिगंबर जैन मंदिर में आयोजित विशाल धर्मसभा में व्यक्त किए। धर्मसभा में मंगल दीपप्रज्वलन डॉक्टर सुधीर जैन लड्डू भैया इंदौर ने किया। गुरदेव के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य तारा चंद बडला एवम राजकुमार पाटनी ने प्राप्त किया। धर्मसभा का सफल संचालन संजय जैन ने किया।
मुनि श्री ने आगे कहा कि तप त्याग संयम को धारण करने से भी यश बढ़ता है।जीवन में संगति बहुत सोच विचार कर करनी चाहिए जिस निमित से भाव खराब हो यश समाप्त हो उसको तुरंत छोड़ देना चाहिए। संसार में राम का यश फेला और रावण का अपयश फेला। संसार प्रतिक्रिया मात्र है जो दोगे वही मिलेगा।बंबूल बोने पर आम के फल नहीं मिलेंगे।