अनवर जलालपुरी का जन्म 6 जुलाई सन 1947 को जलालपुर, अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश में हुआ था, उनका वास्तविक नाम 'अनवर अहमद' था, उन्होंने 1966 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक किया, इसके बाद 1968 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में और 1978 में अवध विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में भी एम.ए. किया, अनवर जलालपुरी उर्दू, अरबी, फ़ारसी विश्वविधालय, नीरज शहरयार अवार्ड चयन कमेटी, यूपी राज्य उर्दू कमेटी से भी जुड़े रहे थे,

गीता' को उर्दू शायरी में ढालने वाले जनाब अनवर अहमद (पद्मश्री अनवर जलालपुरी) साहब की बरसी पर ख़िराज ए अकीदत

मुख्य रचनाएँ 'उर्दु शायरी में गीता', 'जोश-ए-आखिरत', 'उर्दु शायरी में गीतांजलि', 'जागती आंखें', 'हर्फे अब्जद', 'अदब के अक्षर' आदि

पुरस्कार-उपाधि 'इफ्तेखार-ए-मीर सम्मान' (2011), 'उत्तर प्रदेश गौरव सम्मान' (2012), 'साम्प्रदायिक एकता सम्मान' (2015), 'यश भारती' (2016) और पदमश्री मरणोपरांत आदि

प्रसिद्धि उर्दू साहित्य

नागरिकता भारतीय

अन्य जानकारी अनवर जलालपुरी का अहम कार्य 'गीता' को उर्दू शायरी में ढालने का है। 'गीता' के 701 श्लोकों को उन्होंने 1761 उर्दू अशआर में व्याख्यायित किया है।

अनवर जलालपुरी (अंग्रेज़ी: Anwar Jalalpuri, जन्म- 6 जुलाई, 1947, अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 2 जनवरी, 2018, लखनऊ) 'यश भारती' से सम्मानित उर्दू के मशहूर शायर थे, उन्होंने हिन्दू धार्मिक ग्रंथ 'श्रीमद्‌भागवत गीता' का उर्दू शायरी में अनुवाद किया था, उर्दू दुनिया की नामचीन हस्तियों में शुमार अनवर जलालपुरी मुशायरों की निजामत के बादशाह थे, मुशायरों की जान माने जाने वाले अनवर जलालपुरी ने 'राहरौ से रहनुमा तक', 'उर्दू शायरी में गीतांजलि' तथा भगवद्गीता के उर्दू संस्करण 'उर्दू शायरी में गीता' पुस्तकें लिखीं, जिन्हें बेहद सराहा गया, उन्होंने 'अकबर द ग्रेट' धारावाहिक के संवाद भी लिखे थे,

मैं एक शायर हूँ मेरा रुतबा नहीं किसी भी वज़ीर जैसा,

मगर मेरे फिक्र-ओ-फन का फैलाव तो है बर्रे सग़ीर जैसा।

चाहे टीवी पर उर्दू साहित्य का विमर्श हो या मुशायरे के मंचों पर कलाम पढ़ने या उसका संचालन करने की बात हो, आमतौर पर एक खनकती हुई आवाज़ लोगों को बांध लेती थी, वह आवाज़ थी मोहतरम अनवर जलालपुरी साहब की,

जो असमय ही काल- कवलित हो गई, 2 जनवरी 2018 ई. का वो दिन जिसने भी पद्मश्री से सम्मानित मशहूर शायर अनवर जलालपुरी साहब के इंतेक़ाल (निधन) की ख़बर सुनी, स्तब्ध रह गया, आखिरकार हिंदी- उर्दू और गंगा-जमुनी तहज़ीब को यकजां करने वाले मशहूर शायर की आवाज़ आज भी लोगों के कानों में खनक रही है, अनवर जलालपुरी साहब मरहूम की ठहरावयुक्त और खनकती हुई आवाज़ और उसकी रवानी सुनने वालों को आकर्षित करती थी, उनका नाम आते ही उनका वही अंदाज याद आता है, जब वो शायर को मंच पर कलाम पेश करने के लिए शेर के साथ लफ्जों को बड़ी खूबसूरती से बुनते थे, उनके संचालन में एक शिष्टा होती थी, अदब होता था और साथ ही कभी-कभी तंज का स्वर भी होता था, उनका यह अंदाज़ लोगों को उनका कायल बना देता था, भारतीय संस्कृति के वाहक स्व. अनवर जलालपुरी साहब, भारत की गंगाजमुनी तहज़ीब उनके अंदर बसती थी, उन्होंने ने हिंदू घर्मग्रन्थों और भारतीय दर्शन का गहन अध्ययन किया था, जो उनके शेरों में दिखाई देता है, उनका मानना था कि देश की संस्कृति विभिन्न धर्मों वाली है और हम सब एक - दूसरे के नज़दीक तभी आएंगे, जब एक दूसरे के धर्म, संस्कृति, भाषा को समझेंगे और सम्मान देंगे, उन्होंने हिंदू धर्मग्रंथ श्रीमद्भगवद गीता के 700 श्र्लोकों का 1761 शेरों में भावानुवाद किया था। मशहूर कृति गीतांजलि को उर्दू अदब से वाकिफ कराने का काम भी उन्होंने किया,

लेकिन आज बहुत अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि काश जलालपुर कस्बे में अनवर जलालपुरी साहब के नाम कोई चौक, चौराहा या गली का नाम रखा गया होता, ताकि उसी बहाने लोगों की ज़ुबान पर स्व. अनवर साहब का नाम लिया जाता, उर्दू दुनिया की नामचीन हस्तियों में शुमार स्व. अनवर जलालपुरी साहब मुशायरों की निज़ामत के बादशाह थे, साहित्य, दर्शन और धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन करना शुरू से उनकी आदत में शुमार था, श्रीमदभागवत गीता उनको इसलिए अच्छी लगी क्योंकि इसमें दार्शनिक रोशनी के साथ साहित्यिक चाशनी भी है, इसकी तर्जुमानी के दौरान उन्होंने महसूस किया कि दुनियां की तमाम बड़ी किताबों में तकरीबन एक ही जैसा इंसानियत का पैगाम है. पूरी श्रीमदभागवत गीता पढ़ने के बाद उन्होंने करीब 100 ऐसी बातें खोज निकाली थी जो कुरआन और हदीस की हिदायतों से बहुत मिलती-जुलती हैं, मतलब साफ है कि अपने वक्त की आध्यात्मिक ऊंचाई पर रही शख्सियतों की सोच तकरीबन एक जैसी ही है,

मैं जा रहा हूं मेरा इंतेज़ार मत करना,

मेरे लिए कभी दिल सोगवार मत करना,