मुर्शिदाबाद l तृणमूल कांग्रेस के युवराज कहे जाने वाले अभिषेक बंदोपाध्याय राजनीति में अभी नए हैं और अन्य युवाओं की तरह वह भी - चलो कुछ कर के दिखा देते हैं– टाइप फैसले लेते हैं। अरब सागर के किनारे वाले क्रिकेटर यूसुफ पठान को बंगाल की खाड़ी के पास बहरमपुर में लड़ा देने का आइडिया भी उन्हीं का था।

ऐसे हुई यूसुफ की राजनीति में एंट्री

अभिषेक बंदोपाध्याय ने यूसुफ से टाइम लेने की कोशिश की। कई संदेश भिजवाए। मिलने की कोशिश की। कई प्रयास के बाद सफल रहे। मिलने में और मनाने में भी। फिर गोपनीयता रखी गई। कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में घोषणा हुई। भारतीय और आईपीएल की केकेआर टीम से खेल चुके यूसुफ अपनी राजनीतिक पारी खेलने पहुंच गए।

बंगाल में दो क्रिकेटर चुनाव मैदान में

बंगाल में इस बार दो क्रिकेटर चुनाव लड़ रहे। दुर्गापुर से कीर्ति आजाद और बहरामपुर से यूसुफ। यूसुफ तो बंगाल की राजनीति के ब्रेट ली कहे जाने वाले कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी के मुकाबले उतरे हैं। 1999 से पांच बार अधीर रंजन यहां से जीते हैं। इस बार जीतेंगे तो डबल हैट्रिक होगी।

पहली बार मजबूत मुस्लिम प्रत्याशी

52 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले इस क्षेत्र में उनके खिलाफ पहली बार कोई मजबूत मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा है। तृणमूल की रणनीति है मुस्लिम वोट के सहारे ऐसे दुश्मन को परास्त करना, जो बहुत बोलता है। बंगाल की राजनीति में दो ही ऐसे नाम हैं, जिन्हें सुनकर ममता को गुस्सा आता है। एक अधीर और दूसरा भाजपा नेता सुवेंदु अधिकारी।

अधीर अभिषेक को ‘खोका बाबू’ कहते हैं। बांग्ला में छोटे बच्चे को खोका कहते हैं। राजनीति के इसी बच्चे ने अधीर रंजन को लंबा स्पेल लेकर गेंद डालने पर मजबूर कर दिया है। पहली बार अधीर को जनता को विकास और रोजगार समझाना पड़ रहा है।

अधीर के समर्थकों के लंबे तर्क

इस बार फॉर्म में कौन है ? प्रत्याशी के तौर पर निश्चित तौर पर अधीर। उनके समर्थकों के पास उनकी प्रशंसा में लंबे-लंबे तर्क हैं। बाहरी नहीं हैं। खोजने पर मिलते हैं। लड़ाकू हैं। फ्रंट में आकर खेलते हैं। लोगों के दुख-सुख में काम आते हैं। बड़े नाम हैं।

चैलेंज देना आदत

औपचारिक तौर पर तो यही सच है कि अधीर, यूसुफ के खिलाफ लड़ रहे। वास्तव में उनकी सीधी लड़ाई उनके शब्दों में ‘पीसी’ (बुआ) और ‘खोका बाबू’ (भतीजा) से है। जंगीपुर से प्रणब मुखर्जी पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव में जीते थे, तो उसका श्रेय अधीर रंजन को जाता है।

कांग्रेस ने उन्हें संसद में पार्टी का नेता बनाया था। चैलेंज देना उनकी आदत है। हारे तो राजनीति छोड़ देंगे, टाइप चैलेंज वह कई बार कर चुके हैं। फिर वह कहने लगते हैं कि हारेंगे भी नहीं और राजनीति कैसे छोड़ सकते हैं, यही तो उन्हें आता है।