मुंबई। एक कहावत है ‘गरीब की जोरू, गांव की भौजाई’। आजकल महाराष्ट्र में ये कहावत कांग्रेस पर सटीक उतरती दिखाई दे रही है। उद्धव ठाकरे ने उसकी परंपरागत सीटों पर भी अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। अब कांग्रेस से न रोते बन रहा है, न गाते।

अब महाविकास आघाड़ी के बीच सीटों के बंटवारे में भी वह उस कांग्रेस का पक्ष लेने से कतरा जाते हैं, जो विधानसभा में सबसे कम सदस्यों वाला दल होने के बावजूद अब तक टूट-फूट से बचा रहा है। जबकि खुद उनकी पार्टी राकांपा और शिवसेना के तो दो तिहाई से ज्यादा सदस्य टूटकर दूसरा दल बना चुके हैं।
 
 
अब सीट बंटवारे में सिर्फ 16 सीटें पाने के बाद कांग्रेस नेताओं के पास अपने केंद्रीय नेतृत्व के सामने गुहार लगाने के सिवाय कोई चारा नहीं बचा है। महाराष्ट्र में कांग्रेस की इसी लाचारी से त्रस्त होकर अशोक चह्वाण जैसे जनाधार वाले नेता और मिलिंद देवड़ा जैसे युवा नेता कांग्रेस छोड़कर जा चुके हैं। क्योंकि मिलिंद देवड़ा को पहले ही अहसास हो गया था कि कांग्रेस उनकी परंपरागत दक्षिण मुंबई की सीट के लिए शिवसेना (यूबीटी) के सामने मुंह नहीं खोलेगा।
 
जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले द्वारा शिवसेना (यूबीटी) के रवैये पर ऐतराज जताया जाता है, तो शिवसेना (यूबीटी) के प्रवक्ता संजय राउत कहते हैं कि हम तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की बात कर रहे हैं। ये कांग्रेस को तय करना है कि महाराष्ट्र की एक सीट उसके लिए महत्त्वपूर्ण है, या प्रधानमंत्री पद ।