नई दिल्ली। यौन उत्पीड़न जैसे तमाम मामलों में लोगों को त्वरित न्याय उपलब्ध कराने की संकल्पना पर आधारित फास्ट ट्रैक विशेष अदालतें अगले तीन साल और चलती रहेंगी। केंद्रीय कैबिनेट ने इस फैसले को अपनी मंजूरी प्रदान कर दी है। दिल्ली के बहुचर्चित निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले के बाद 2018 में आपराधिक न्याय (संशोधन) अधिनियम पारित किया गया था।
इसके बाद केंद्र सरकार ने 1023 फास्ट ट्रैक विशेष अदालतों के गठन का फैसला किया था। इनमें 31 राज्यों में 389 अदालतें खास तौर पर बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बने पास्को कानून से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए हैं। इस योजना की शुरुआत 2019 में गांधी जयंती के अवसर पर एक वर्ष के लिए की गई थी, जिसे बाद में इस साल 31 मार्च तक दो साल के लिए बढ़ा दिया गया था। वैसे एक तथ्य यह भी है कि केंद्र सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद 1023 अदालतों में केवल 754 ही आपरेशनल यानी सक्रिय हैं।
निर्भया फंड से दिया जाएगा केंद्र का हिस्सा
यह राज्यों की हीलाहवाली ही है कि वे विशेष अदालतों के मामले में अपेक्षा के अनुरूप सक्रियता नहीं दिखा सकीं। तमाम राज्यों ने केंद्र से इस तरह की विशेष अदालतें बनाने के लिए वादा तो किया, लेकिन ज्यादातर राज्य इन्हें संचालन की स्थिति में नहीं ला सके हैं। मंगलवार को केंद्रीय कैबिनेट ने इन अदालतों को तीन साल का विस्तार देने का जो फैसला लिया, उस पर 1952.23 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
इसमें केंद्र सरकार 1207.24 करोड़ रुपये खर्च करेगी, जबकि राज्यों का योगदान 744.99 करोड़ रुपये होगा। केंद्र का हिस्सा निर्भया फंड से दिया जाएगा। केंद्र सरकार ने एक बयान में कहा है कि तीस राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों ने इस योजना में भाग लिया है।
761 फास्ट ट्रैक विशेष अदालतें हुई संचालित
इससे 761 फास्ट ट्रैक विशेष अदालतें संचालित हुई हैं, जिनमें 414 विशिष्ट पास्को कोर्ट हैं। इन अदालतों के जरिये 195000 मामले निपटाए गए हैं। फास्ट ट्रैक विशेष अदालतों की संकल्पना इस ²ष्टि से की गई है कि इनमें से प्रत्येक हर साल 65 से 165 मामलों का निस्तारण करेंगी। ऐसी एक अदालत पर वार्षिक खर्च लगभग 75 लाख रुपये आता है। इसमें सामान्य तौर पर एक न्यायिक अधिकारी और सात सहायक कर्मी होते हैं।