पुणे: संगीत के माध्यम से शांति रस का अनुभव किया जा सकता है। सरस्वती नदी के उद्गम स्थल पर बने श्री सरस्वती ज्ञान विज्ञान धाम में भारत रत्न लता मंगेशकर की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। लतादीदी की हर धुन गाणदेवी सरस्वती का स्वर है। यह भावना माइर्स एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने व्यक्त की।

एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी की ओर से उत्तराखंड के पास माणा गांव में बने श्री सरस्वती मंदिर में गानसरस्वती भारतरत्न लता मंगेशकर की कांस्य स्वर्ण की प्रतिमा स्थापित की जानेवाली है। इस अवसर पर पुणे के लोणी कालभोर के विश्वराज बाग स्थित श्री विश्वदर्शन देवता मंदिर में इस प्रतिमा को भिजवाने के अवसर पर ऐतिहासिक स्वरसुमनंजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

यहां पर परमपूज्य कर्वे गुरूजी, आदिनाथ मंगेशकर, गायिका साधना सरगम, उषा विश्वनाथ कराड, एमआईटी एडीटी विश्वविद्यालय के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो.डॉ. मंगेश तु. कराड, डॉ. सुनीता कराड, पं. वसंतराव गाडगिल, मुकेश शर्मा, डॉ. एस.एन.पठाण, डब्ल्यूपीयू के कुलपति डॉ. आर.एम.चिटणीस, एमडीटी के प्रो. वाइस चांसलर डॉ. अनंत चक्रदेव और डॉ. महेश चोपडै मौजूद थे।

इस मंदिर में रखी गई लता मंगेशकर की स्वर्ण प्रतिमा १५ अगस्त तक सभी नागरिकों के दर्शन और श्रध्दांजलि के लिए खुली रहेगी। यहां कोई व्यक्ती पुष्पांजलि अर्पित कर सकता है। साथ ही अपनी कला भी प्रस्तुत कर सकते है।

डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, लोगों को लगा कि लतादीदी, जो देवी शारदा की बहन की तरह थीं, अपनी बहन के घर वापस चली गई। आज दुनिया का सबसे बडा गुंबद माऊली के आशीर्वाद से बनाया गया है। साथ ही स्वामी विवेकानंद के अनुसार २१वीं सदीं में भारत विश्व गुरू  के रूप में उभरेगा। यह उसी दिशा में आगे बढ रहा है।

इसके बाद पं. उपेंद्र भट ने मिले सुर मेरा तुम्हारा, तो बने सुर हमारा, और बाजे मुरलिया गाने की प्रस्तुति दी और दर्शकों को सप्तसुरों क अनोखी दुनिया में ले गए। गायिका साधना सरगम ने विश्वाचे आगत्य माझ्या मनी प्रकाशले..., व मिरा के प्रभू गिरिधरनाथ... गीत को प्रस्तूत किया. उसके बाद गायक रवींद्र यादव ने स्वरसुमनांजलि दी। साथ ही कवि दार्शनिक स्व.उर्मिला विश्वनाथ कराड द्वारा लिखित अंतिम कविता को संगीतकार निखिल महामुनि और गायिका श्रुति देशपांडे ने प्रस्तूत किया। संगीतकला अकादमी की गायिका श्रेयसी पावगी और गायत्री गायकवाड ने स्वरांजलि भेट दी।

पश्चात कर्वे गुरूजी, आदिनाथ मंगेशकर, साधना सरगम, पं. वसंतराव गाडगिल, मुकेश शर्मा, डॉ. एस.एन. पठान ने लता दीदी की पुरानी यादे ताजा की।

डॉ. संजय उपाध्ये ने प्रस्तावना में कहा, इस देश को मंगेशकर गीत की संस्कृति मिली है। सूत्रसंचालन डॉ. महेश थोरवे ने किया।