बालोतरा की बेटी नीतू चौपड़ा अपने प्रोजेक्ट परवाज डर को डराओ डेरिंग बन जाओ के तहत पांच देशों की यात्रा पर निकली हुई है। 16 जून को को नीतू ने रकसोल बिरगंज बॉर्डर से नेपाल में प्रवेश किया था। अब उन्होंने अपना मिशन पूरा किया है बीरगंज, काठमांडू, पोखरा, चितवन, नारायणघाट, लुम्बिनी, त्रिवेणी, वाल्मीकिनगर होकर नीतू वापस काठमांडू पहुंची। इस दौरान नीतू चौपड़ा ने यात्रा के दौरान अपने अनुभव साझा किए। मुझे 1 सितंबर को एवरेस्ट बेस कैंप की यात्रा के लिए नेपाल जैन परिषद की ओर से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। यूं तो एवरेस्ट बेस कैंप काफी युवाओं के लिए एक विश लिस्ट होता है। अमूमन एवरेस्ट बेस कैंप को 14 दिन में कम से कम एक लाख रुपए का खर्चा लगता है लेकिन हर बार कि तरह इस बार भी मैंने इसे बिलकुल जीरो बजट में किया है।
एवरेस्ट बेस कैंप के लिए वाऑल्ड लाइफ तथा सोलुखूंभू क्षेत्र की परमिट जो की 3400 नेपाली रुपए की थी। उसके लिए नेपाल पर्यटन विभाग को निवेदन करने पर परमिट को निशुल्क कर दिया। 14 सितंबर को एवरेस्ट बेस कैंप पहुंची और 5364 मीटर पर तिरंगा फहराया। मैने अपना यह ट्रैक 20 दिन में पूरा किया। बेस कैंप सहित तीन हाई पासेस खोंगमाला, छोला पास और रेंजुला पास को भी फतह किया। इस दौरान गलती से आगे निकल जाने पर नागजुम्भा ग्लेशियर में फंस गई और ये बहुत ही जानलेवा अनुभव रहा। मैने उस दिन और एक रात बिना खाना-पानी के बिताए। परेशान होकर सुरक्षित जगह ढूंढने के दौरान पहाड़ पर चढ़ते वक्त पत्थर निकल कर हाथ में आ गया और मेरा बैग ग्लेशियर में जा गिरा।
एक चट्टान से भिड़ने की वजह से मुझे काफी चोटें भी आई। यदि मैं चट्टान से नहीं भिड़ती तो मेरे बैग के साथ ग्लेशियर में जा गिरती। मौत को इतने करीब से महसूस करने का यह अनुभव बेहद भयावह था। इसके बाद मैं गोक्यों पांचों लेक के बाद रेंजुला पास पूरा कर दुबारा सल्लेरी के रास्ते जीप से नीचे उतरी। अंतिम तीन दिन मुझे 24 से 26 किमी के लंबे लंबे ट्रैक करने पड़े। पर अंत में मैने अपने लक्ष्य को पूरा कर एवरेस्ट बेस कैंप, गोक्यों पांच लेक, तीनों हाई पास और 4000 मीटर से ऊपर पांच नगरशंख, गोक्योंरी, कलपत्थर, खंगारी को पूरा कर 27 सितंबर को काठमांडू पहुंची। इस तरह मैने बिना रुपए मानवीयता और अपने सराहनीय मिशन के साथ यह रोमांचक ट्रैक को पूरा किया। इसकी सफलता का श्रेय नेपाल पर्यटन विभाग तथा नेपाल जैन परिषद के साथ स्थानीय लॉज और होटल को जाता है, जो सहयोग के लिए आगे आए।