दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यौनकर्मी (सेक्स वर्कर्स) एक नागरिक को उपलब्ध सभी अधिकारों का हकदार है, लेकिन साथ ही, अगर वह कानून का उल्लंघन करती है, तो उसे कानून के तहत समान परिणाम भुगतने होंगे और किसी विशेष ट्रीटमेंट का दावा नहीं कर सकता. हाल ही में न्यायमूर्ति आशा मेनन ने एक यौनकर्मी की जमानत अर्जी खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसने कथित तौर पर 13 नाबालिग लड़कियों की तस्करी की थी, जिन्हें बाद में महिला के वेश्यालय से छुड़ाया गया था. यौनकर्मी को पिछले साल 19 मार्च को वेश्यालय से गिरफ्तार किया गया था.
कोर्ट ने ये कहा
कोर्ट ने कहा, "आवेदक पर ना केवल अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 के तहत अपराधों का आरोप लगाया गया है, बल्कि धारा 370 आईपीसी (व्यक्ति की तस्करी) और 372 आईपीसी (वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए नाबालिग को बेचना, आदि) के तहत भी अपराध का आरोप लगाया गया है, जो बेहद गंभीर हैं." महिला के वकील अधिवक्ता रजत कात्याल ने कहा कि उसकी मां को अपने दोनों घुटनों की तत्काल सर्जरी की जरूरत है और उसने कम से कम एक सप्ताह की जमानत मांगी.
दूसरी ओर, राज्य ने यह कहते हुए जमानत का विरोध किया कि अभियोक्ता से पूछताछ की जानी चाहिए और अगर जमानत दी जाती है तो मुकदमे को नुकसान होगा. एकल पीठ ने यह भी कहा, जांच अधिकारी के अनुसार, मुरली नाम का एक व्यक्ति वर्तमान में आवेदक की मां की जरूरतों का ख्याल रख रहा है.
कोर्ट ने कहा कि महिला की दलील का कोई मतलब नहीं है कि उसे एक हफ्ते की अंतरिम जमानत देकर उसकी ईमानदारी की परीक्षा ली जाए और उसकी मां का ऑपरेशन किया जाए और यह देखने के लिए इंतजार किया जाए कि क्या वह जमानत अर्जी खारिज करते समय आत्मसमर्पण करती है.