नई दिल्ली,  20 जून 2022 का वो दिन... ये ही वो तारीख है जब 56 साल पुरानी पार्टी शिवसेना में दरार पड़नी शुरू हो गई थी। उस दिन से लेकर आज तक, इस एक साल में काफी कुछ बदल चुका है। महाविकास आघाड़ी सरकार का गिरना, उद्धव ठाकरे का सीएम पद से इस्तीफा देना, एकनाथ शिंदे का मुख्यमंत्री बनना और उद्धव ठाकरे के हाथ से शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न (तीर-धनुष) छिन जाना.... सब इस एक साल के दौरान ही हुआ।

विधान परिषद के चुनाव में क्रॉस वोटिंग

19 जून को शिवसेना अपना स्थापना दिवस मनाती है। बीते साल इसके अगले दिन यानी 20 जून को हुए विधान परिषद के चुनाव के दौरान पार्टी में बिखराव दिखा। दरअसल, इस चुनाव में क्रॉस वोटिंग हुई थी। कहा जाता है कि यहीं से शिवसेना में दो फाड़ की कहानी शुरू हो गई। ये ही वो चुनाव था जिसके बाद एकनाथ शिंदे, उद्धव ठाकरे की पहुंच से दूर हो गए। उद्धव कोशिश करते रहे, लेकिन एकनाथ से संपर्क नहीं हो पा रहा था।

गुजरात से असम फिर असम से गोवा पहुंचे बागी विधायक

शिवसेना के नेता कुछ समझ पाते इससे पहले ही एकनाथ शिंदे कई विधायकों के साथ बगावत का बिगुल फूंक चुके थे। एकनाथ शिंदे रातों-रात शिवसेना के 40 से ज्यादा और करीब सात निर्दलीय विधायकों के साथ गुजरात के सूरत के एक होटल में डेरा डाल चुके थे। पार्टी अध्यक्ष और सीएम एकनाथ शिंदे ने सख्त एक्शन लिया और शिंदे को विधायक दल के नेता पद से हटा दिया।

उद्धव की तरफ से बागी विधायकों को बार-बार बुलावा भेजा गया, लेकिन उन्होंने एक ना सुनी। शिंदे गुट के विधायकों ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का एलान कर दिया। महाविकास आघाड़ी के पास सरकार बनाने के लिए जरूरी संख्याबल की कमी थी, लिहाजा उद्धव ठाकरे को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा।

शिवसेना (यूबीटी) का एलान

उद्धव के हाथ से मुख्यमंत्री की कुर्सी, पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न तो गया ही, उनके पास से कई विधायकों-सांसदों का भी समर्थन भी चला गया। सीएम बनने के बाद एकनाथ शिंदे ने पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न पर अपना दावा ठोक दिया। चुनाव आयोग ने शिंदे गुट के पक्ष में फैसला सुनाया। इस तरह उद्धव गुट ने अपनी नई पार्टी शिवसेना (उद्धव बालसाहेब ठाकरे) का एलान कर दिया।

किसके पास कितने विधायक और सांसद?

शुंदे गुट के पास अभी शिवसेना के कुल 55 में से 40 विधायकों का समर्थन प्राप्त है, जबकि उद्धव गुट को सिर्फ 15 विधायकों का ही समर्थन है। लोकसभा के 13 सांसद शिंदे गुट और बाकी उद्धव गुट के साथ हैं।

राज्यों के संगठनों पर भी शिंदे हावी

कई राज्यों के संगठनों पर भी शिंदे गुट, उद्धव गुट पर हावी है। लगभग एक दर्जन राज्यों का साथ शिंदे गुट को मिला हुआ है।