नई दिल्ली। यूं तो छुट्टी के दिनों में हवाई किराए में वृद्धि सामान्य बात है, लेकिन चुनावी माहौल में यह राजनीतिक मुद्दा भी बनता रहा है।

दो दिनों पहले कांग्रेस केसी वेणुगोपाल और उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच हुए सियासी घमासान के बाद मंत्रालय की ओर से स्पष्ट किया गया है कि कोविड काल से आपात दिनों में हवाई किराए को जरूर नियंत्रित किया गया था, लेकिन सामान्य दिनों में इसे विश्व में कहीं भी नियंत्रित नहीं किया जाता है। ऐसा करना एविएशन सेक्टर से भी घातक होगा और उपभोक्ताओं के लिए भी अच्छा नहीं होगा।

अभी देश के प्रमुख हवाई मार्गो पर किराये सामान्य दिनों के मुकाबले बहुत ज्यादा हैं। दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-कोलकाता, बंगलोर-पटना, चेन्नई-तूतीकोरण, दिल्ली-लेह जैसे मार्गों पर किराये दो महीने पहले के मुकाबले दोगुनी है। एक बड़ा कारण गर्मी की छुट्टियों को बताया जा रहा है।

क्या किराये को किया जा सकता है नियंत्रित?

केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि हवाई किराये की रोजाना निगरानी की जा रही है और उनके हस्तक्षेप से वृद्धि का सिलसिला थोड़ा कम हुआ है, लेकिन नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।

इनका कहना है कि जब समूचे एविएशन सेक्टर को नियंत्रण से मुक्त किया जा चुका है तब किराये पर कैप लगाने से बाजार की संरचना खराब हो जाएगी और इसका खामियाजा अंतत: यात्रियों को भी भुगतना पड़ेगा।

क्यों बढ़ रहे एयरलाइंस के दाम?

नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधिकारी हवाई किराये में मौजूदा वृद्दि के लिए कई वजहें बता रहे हैं। एक अधिकारी ने बताया कि जिन मार्गों पर गो फ‌र्स्ट की उड़ाने सबसे ज्यादा थी वहां किराये सबसे ज्यादा बढ़े हैं। निजी एय़रलाइन गो फ‌र्स्ट ने अपनी उड़ानों को बंद करते हुए दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने का आवेदन किया है।

मंत्रालय ने 05 जून को निजी एयरलाइनों के साथ एक बैठक में उन्हें सख्ती से सलाह दी थी कि कुछ चुनिंदा मार्गों पर किरायों को नियंत्रण में रखें। इसमें देश के वो हवाई मार्ग शामिल थे जहां किराये सबसे ज्यादा बढ़े हैं। अधिकारी स्वीकार करते हैं कि पूरी दुनिया में हवाई सेवा पूरी तरह से बाजार से नियंत्रित हो रही हैं और भारत में जब से ऐसा किया गया है, इसका फायदा ही मिला है।

अभी मंत्रालय सिर्फ आपदा के दौरान या कुछ दूसरे मानवीय पहलुओं को ध्यान में रखते हुए किराये को नियंत्रित करने की मंशा रखता है। हाल ही मे ओडिशा रेल दुर्घटना के मामले में एयरलाइनों को मृतकों के परिजनों को मुफ्त कार्गो सेवाएं प्रदान करने की सलाह दी गई थी।

नियंत्रणमुक्त हो गया था घरेलू विमानन क्षेत्र

सरकार के हाथ बंधे होने की एक वजह यह है कि मार्च, 1994 में वायु निगम अधिनियम को निरस्त कर दिया गया था। इससे भारत का घरेलू विमानन क्षेत्र से पूरी तरह से नियंत्रणमुक्त हो गया था। एय़रलाइनों को किसी भी क्षमता के विमानों को अपने बेड़े में शामिल करने और किसी भी रूट पर अपनी सेवा प्रदान करने की छूट दी गई है। ये कंपनियां अपनी इच्छानुसार कोई भी किराया तय कर सकती हैं।

असलियत में अभी कोई ऐसा नियम या कानून नहीं है, जो केंद्र सरकार को देश में सेवा देने वाली एयरलाइनों के किराये को तय करने का अधिकार दे। भारतीय एयरलाइनों की मूल्य निर्धारित प्रणाली भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित प्रणाली (बाल्टी या आरबीडी) के तहत कार्य करती हैं।

डीजीसीए को हवाई परिवहन के आर्थिक नियंत्रण का अधिकार नहीं दिया गया है। यही नहीं वर्ष 2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक निर्देश दिया था कि डीजीसीए एयरलाइनों व उनके दूसरे उत्पादों के लिए टैरिफ तय नही कर सकता।