जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण आने वाले वर्षों में लू का प्रकोप तेजी से बढ़ेगा। इसका असर भारत और पाकिस्तान में ज्यादा होगा। अरब सागर की बढ़ती गर्मी से पांच-सात वर्ष में ही लू का कहर 30 प्रतिशत तक बढ़ जाने की आशंका है। चिंताजनक यह कि इस स्थिति में करीब-करीब हर क्षेत्र प्रभावित होगा। गैर सरकारी संगठन क्लाइमेट ट्रेंड द्वारा पिछले सप्ताह बेंगलुरु में लू पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में जलवायु विशेषज्ञों ने इस सच्चाई को स्वीकारते हुए इससे बचाव के उपाय करने पर जोर दिया।
अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में तेजी से बढ़ रहा है तापमान
मौसम विभाग की सहयोगी संस्था इंडियन इंस्टीटयूट आफ ट्रापिकल मीट्रियोलाजी (आइआइटीएम) पुणे के जलवायु विशेषज्ञ प्रो. राक्सी मैथ्यू कौल ने कहा कि भारत से सटे अरब सागर और बंगाल की खाड़ी, दोनों में तेजी से तापमान बढ़ रहा है। हालांकि, हिंद महासागर में भी तापमान में वृद्धि हो रही है, लेकिन इन दोनों की अपेक्षा कम तेजी से। राक्सी कहते हैं कि यहां से चल रही गर्म हवा भारत और पाकिस्तान को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगी।
बढ़ रहा है धरती का तापमान
वहीं, आइआइटी गांधीनगर भी इस मुद्दे पर अध्ययन कर रहा है। यहां के प्रो. विमल मिश्रा ने बताया कि महासागरों का ही नहीं, बल्कि धरती का तापमान भी बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि दक्षिण एशिया में मुख्य रूप से तीन हाटस्पाट- भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश हैं। चूंकि बांग्लादेश तटीय क्षेत्र में आता है, लिहाजा भारत और पाकिस्तान पर ही अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आने वाली गर्म हवा का असर ज्यादा होता है। उन्होंने बताया कि आबादी का बढ़ना और हरित क्षेत्र का कम होना भी लू बढ़ने का कारण है।
प्रो. मिश्रा के मुताबिक, जब लू के दिन बढ़ेंगे, इसका कहर अधिक होगा, तो इसका असर फिर लगभग हर क्षेत्र में देखने को मिलेगा। बिजली-पानी की मांग, कृषि क्षेत्र में सिंचाई, स्वास्थ्य और श्रम उत्पादकता इत्यादि हर व्यवस्था प्रभावित होगी।
उन्होंने बताया कि वैश्विक स्तर पर 1.2 डिग्री तापमान पहले ही बढ़ चुका है। अगले कुछ वर्ष में इसके 1.5 डिग्री तक पहुंच जाने के आसार हैं। उस स्थिति में समस्याएं और विकट होने वाली हैं। बाक्सलू के कहर से बचने के लिए क्या किया जाए-उपयोगी एवं कारगर हीट एक्शन प्लान बनाए जाएं-संवेदनशील जिलों के लिए जलवायु अनुकूलन के उपाय किए जाएं -भूजल स्तर का संरक्षण करने के लिए कार्ययोजना तैयार की जाए-कमोबेश हर स्तर पर जलवायु अनुकूलन के प्रयास किए जाएं