कर्नाटक के चुनाव प्रचार अभियान में राजनीतिक पार्टियां और राजनेता भले ही राष्ट्रीय मुद्दों को उठाने से गुरेज नहीं कर रहे, मगर मतदाताओं की चुनावी चर्चा तो स्थानीय सवाल और रोजमर्रा की उनकी जिंदगी को प्रभावित करने वाले मुद्दों के इर्द-गिर्द ही केंद्रित नजर आ रही है।

देश की आईटी राजधानी माने जाने वाले बेंगलुरू शहर में आईटी प्रोफेशनल्स हों, रेहड़ी-पटरी वाले या ग्रामीण इलाकों के किसान, छोटे दुकानदार चुनावी चर्चा में सबको महंगाई से राहत चाहिए तो रोजगार और आमदनी बढ़ाने के बेहतर साधन।

सूबे के चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों की चर्चा से परहेज पर इनके तर्क हैं कि रोजाना की जिंदगी को मुश्किल बनाने वाली चुनौतियों से निपटे बिना बड़े आयामों पर सोच-विचार करने की बातें बेमानी है। बेंगलुरू के एक पॉश इलाके चर्च रोड पर रविवार की छुटी का आनंद उठाने निकले आईटी प्रोफेशन्लस की एक युवा टोली चुनाव को लेकर चर्चा करने से पहले तो हिचकती है, मगर दो-चार मिनट के संवाद के बाद खुलकर अपनी अपेक्षाओं की बात कहने लगते हैं।

महंगाई है असल मुद्दा

कॉफी की सिप के साथ युवा आईटी प्रोफेशनल अजित कहते हैं कि कई बड़े नेता राष्ट्रीय मुद्दे उठा रहे हैं और साफ है कि स्थानीय लोगों की समस्याओं से उनका कोई सरोकार नहीं। असल मुद्दा है कि चाहे खान-पान की वस्तु हो, दवाई, डीजल-पेट्रोल, रसोई गैस सब की कीमतें काफी बढ़ गई हैं। आमदनी इसकी तुलना में नहीं बढ़ी। चुनाव है तो हम सोचेंगे ही कि मौजूदा चुनौतियों से कौन राहत दिला सकता है।

''कोविड से पहले अच्छी थी आमदनी''

मधु और उनके साथ मौजूद राजू गौड़ा कांग्रेस नेता सिद्धारमैया से अपनी उम्मीद जाहिर करते हैं। होसकोटे में ही दवा-जेनरल स्टोर्स की दुकान चला रहे श्रीनिवास कहते हैं कि कोविड से पहले रोजाना 25-30 हजार की ब्रिकी हो जाती थी और आमदनी अच्छी थी, मगर आज 15 हजार की सेल बमुश्किल है। वे दावा करते हैं कि सभी छोटे दुकानदारों की यही हालत है और लोग इसीलिए बदलाव की ओर देख रहे हैं।