नरवाई जलाने पर प्रतिबंध

जिला दण्डाधिकारी ने जारी किया आदेश

होम /पन्ना/ मध्यप्रदेश

प्रमुख समाचार

कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी श्री संजय कुमार मिश्र ने दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 144 के तहत आदेश जारी कर तत्काल प्रभाव से पन्ना जिले की सीमा में गेहूं और अन्य फसलों के डंठलों (नरवाई) में आग लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। जनसामान्य के हित, सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा, पर्यावरण की हानि रोकने और लोक व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से उक्तादेश जारी किया गया है। आदेश के उल्लंघन पर भा.द.वि. की धारा 188 के तहत दण्डनीय कार्यवाही की जाएगी।

जिला दण्डाधिकारी द्वारा संपूर्ण जिले में मुनादी के जरिए आदेश की सूचना देने के लिए भी निर्देशित किया गया है। इसके अलावा प्रत्येक कम्बाईन हार्वेस्टर के साथ भूसा तैयार करने के लिए अनिवार्य रूप से स्ट्रारीपर रखने एवं कृषक द्वारा स्ट्रारीपर से भूसा तैयार करने के लिए सहमत होने पर ही हार्वेस्टर से फसलों की कटाई के लिए निर्देशित किया गया है।

विदित हो कि नरवाई में आग लगाना कृषि के लिए नुकसानदायक होने के साथ ही पर्यावरण की दृष्टि से भी हानिकारक है। इससे गत वर्षों में बड़ी अग्नि दुर्घटनाओं के साथ-साथ व्यापक संपत्ति की हानि भी हुई है। ग्रीष्मकाल में बढ़ते जल संकट में बढ़ोत्तरी होने के साथ ही कानून व्यवस्था के लिए विपरीत परिस्थितियां भी निर्मित होती हैं। साथ ही खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जन, धन, संपत्ति, प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु इत्यादि नष्ट होने से व्यापक नुकसान होता है। खेत की मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाने से खेत की उर्वरा शक्ति घटती है और उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। खेत में पड़ा कचरा, भूसा, डंठल इत्यादि सड़ने के बाद भूमि को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाते हैं। इन्हें जलाकर नष्ट करना उर्जा को नष्ट करने जैसा है। आग लगाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होने से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता है।

वर्तमान में गेहूं की फसल कटाई अधिकांशतः कम्बाईन हार्वेस्टर द्वारा की जाती है। कटाई के बाद गेहूं के डंठल (नरवाई) से भूसा न बनाकर प्रायः जलाने की प्रथा है, जबकि पशु आहार के साथ-साथ भूसे का उपयोग अन्य वैकल्पिक रूप में भी किया जा सकता है। ईंट भट्टा और अन्य उद्योगों में भी भूसे का उपयोग किया जाता है। अन्य जिलों के साथ अनेक राज्यों में भी भूसे की मांग रहती है। भूसा व पैरा के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होने पर पशुओं द्वारा अन्य हानिकारक पदार्थों व पाॅलीथीन इत्यादि का सेवन कर बीमार होते हैं। कई बार मृत्यु हो जाने पर पशु धन की हानि भी होती है, जबकि नरवाई का भूसा दो-तीन माह बाद दोगुनी दर पर विक्रय होता है और किसानों को बढ़ी हुई दर पर भूसा क्रय करना पड़ता है।