नई दिल्ली। तेलंगाना के बाद बिहार को अपनी दूसरी बड़ी उपलब्धियों वाली कर्मभूमि बनाने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल में फिर से सक्रियता बढ़ा दी है। उनकी राजनीति के केंद्र में मुस्लिम बहुल वह क्षेत्र है, जहां उन्हें बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार पांच सीटों पर जीत मिली थी। उनके निशाने पर लालू प्रसाद का माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण भी है, जिसके सहारे साढ़े तीन दशकों से राजद बिहार की राजनीति का धुरी बना हुआ है।

नौ महीने बाद ओवैसी बंगाल से सटे बिहार के सीमांचल में आए

ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के पांच में से चार विधायकों को तोड़कर राजद नेता तेजस्वी यादव ने गत वर्ष जून में उन्हें बड़ा झटका दिया था, तभी से बिहार की राजनीति को ओवैसी के पलटवार का इंतजार था। पार्टी में बड़ी टूट के लगभग नौ महीने बाद ओवैसी बंगाल से सटे बिहार के सीमांचल में आए। दो दिन सक्रिय रहे। सभाएं कीं। समर्थकों से राय-शुमारी की।

पार्टी कम से कम 50 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी

लौटने के पहले ओवैसी ने राजद-कांग्रेस और जदयू की परेशानी बढ़ाने वाली घोषणा कर दी कि अगले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी कम से कम 50 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। पिछली बार सिर्फ 20 सीटों पर ओवैसी के प्रत्याशी थे, जिनमें पांच पर उन्हें जीत मिली थी। साथ ही बाकी कई सीटों पर महागठबंधन की हार का आधार तैयार कर दिया था।

ओवैसी ने अभी तक संसदीय चुनाव की रणनीति को स्पष्ट नहीं किया है, किंतु सीमांचल में आईएमआईएम की सक्रियता का सबसे अधिक असर महागठबंधन पर पड़ना तय माना जा रहा है, क्योंकि वहां के मतदाता धार्मिक आधार पर गोलबंद होते रहे हैं।

कांग्रेस को किशनगंज की सीट पर जीत मिली थी

लालू के माय समीकरण बनाने के बाद से सीमांचल को राजद का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। पिछले संसदीय चुनाव में भी महागठबंधन का खाता सिर्फ एक सीट के रूप में बिहार में इसी क्षेत्र में खुल पाया था। कांग्रेस को किशनगंज की सीट पर जीत मिली थी। बाकी सभी 39 सीटों पर राजद समेत विपक्ष के सभी दलों का सफाया हो गया था। एआईएमआईएम की संपूर्ण राजनीति भाजपा विरोध की रही है। फिर भी भाजपा विरोधी खेमे में ओवैसी को वह स्थान प्राप्त नहीं है, जो दूसरे दलों एवं नेताओं को है।

विडंबना यह भी है कि कांग्रेस समेत लगभग पूरा विपक्ष एआईएमआईएम को भाजपा की बी-टीम बताकर ओवैसी को अलग-थलग करने का प्रयास करते रहते हैं। तेजस्वी यादव ने एआईएमआईएम के चार विधायकों को राजद में शामिल करके ओवैसी को एक तरह से विपक्ष के बंधन से मुक्त कर दिया है। यही कारण है कि बिहार दौरे के वक्त ओवैसी ने सबसे ज्यादा लालू परिवार और राजद को ही निशाने पर रखा।

बिहार में सक्रियता, नजर बंगाल पर

ओवैसी का प्रयास सीमांचल के बहाने बंगाल में भी अपने प्रभाव को बढ़ाने का होगा। सीमांचल में ओवैसी ने यदि अपनी खोई जमीन को फिर से प्राप्त कर लिया तो इसी के सहारे वह बंगाल में भी पैठ बढ़ाने का प्रयास करेंगे। सीमांचल से सटे बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद जिले में मुस्लिमों की आबादी अच्छी है, जो हार-जीत का समीकरण बदलने में सक्षम हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बंगाल में पैठ बढ़ाने के लिए ओवैसी के पास यह सही वक्त होगा, क्योंकि वहां कांग्रेस और वामदल की राजनीति दम तोड़ते दिख रही है। विधानसभा चुनाव में दोनों के साथ लड़ने के बावजूद किसी का खाता नहीं खुल सका। हालांकि पिछले महीने विधानसभा की सीट सागरदिघी के उपचुनाव में जीत से कांग्रेस का मनोबल बढ़ा है, लेकिन इसके दम दिल्ली का रास्ता तय नहीं किया जा सकता है।