इन दिनों इंटरनेट के नागरिकों (नेटीजन्स) से लेकर देश के नागरिकों तक सबको एक ही वजह से मियादी बुखार ने जकड़ रखा है। जनता तो जनता, नेताओं तक ने देश की चिंता छोड़ बिकिनी की चिंता शुरू कर दी है।
बस इसी एक फिक्र में हलकान हुए हैं सब कि दीपिका पादुकोण ने फिल्म पठान के एक गाने “बेशर्म रंग” में एक महान देश की महान संस्कृति पर ऐसा कलंक लगाया है कि धोए से न धुले। मध्य प्रदेश के गृहमंत्री ने तो फिल्म को एमपी में बैन तक करने की डिमांड कर डाली है।
एक पार्टी और विचारधारा के नेता संस्कृति की चिंता में घुलते नजर आएं तो दूसरे कैसे चुप बैठें। मुस्लिम संगठन और उलेमा वाले भी चले आए हैं। सोशल मीडिया पर हर दूसरी पोस्ट ने दीपिका पादुकोण के इनर विअर की तफ्तीश में जांच कमेटी बिठा रखी है।
टेलीविजन वाले रोज प्राइम टाइम डिबेट में बिकनी पुराण चला रहे हैं और चार दलों के लोगों को आपस में बिठाकर लड़वा रहे हैं।
जीवन की बाकी सारी चिंताएं हवा हो गई हैं। फिक्र बस अब एक ही है। बॉलीवुड की एक हिरोइन और उसके कपड़ों से देश पर जो संकट मंडरा रहा है, उस संकट से कैसे निजात मिले।
अभी चंद रोज पहले यशराज बैनर्स के तले बनी शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण की नई फिल्म पठान का एक गाना “बेशर्म रंग” यूट्यूब पर रिलीज हुआ।
4 दिन के अंदर यूट्यूब पर इस गाने को 64 मिलियन लोगों ने देख डाला। लोग गाना देखते जा रहे हैं और गालियां देते जा रहे हैं। शाहरुख खान को, दीपिका पादुकोण को, फिल्म को, फिल्म बनाने वालों को, हीरो के धर्म को, हिरोइन के ईमान को।
और इन सारी गाली-गुच्चे के बीच पवित्र और नैतिकता के झंडाबरदार सिर्फ फतवे जारी करने वाले हैं।
सच तो ये है कि यहां सबको अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का मौका मिल गया है, लेकिन इस पूरे कौआधंसान के बीच में एक सबसे जरूरी बात पर किसी का ध्यान ही नहीं गया।
बात फिल्म की नहीं है, बात कपड़ों की भी नहीं है, न कपड़ों के रंग की है। बात एक औरत के कपड़ों पर लेंस ताने मर्दों की नजर की है। बात एक औरत के कपड़ों का बहीखाता बना रहे, उसे कैरेक्टर सर्टिफिकेट बांट रहे मर्दों की सोच की है।
सुबह उठते ही आप जो अखबार के पन्ने पलटते हैं, उस में ट्रक के टायर से लेकर मर्दों की अंडरवियर तक कोई बिकिनी वाली औरत बेच रही होती है। आप चार मिनट एक्स्ट्रा उस पन्ने पर ठहरते हैं और मन ही मन मचल रहे होते हैं। बस आपत्ति नहीं करते।
उसी अखबार के दसवें पन्ने पर आप किसी नाबालिग बच्ची के साथ हुए रेप की खबर पढ़ते हैं, गुजरात के बलात्कारियों के बाइज्जत बरी होने की खबर पढ़ते हैं, किसी स्कूल की बच्ची के आत्महत्या की खबर पढ़ते हैं क्योंकि उसका एमएमएस बनाकर उसके बॉयफ्रेंड ने पब्लिक कर दिया।
निर्भया के दस साल पूरे होने की रात दिल्ली में एक लड़की का मुंह एसिड से जलाए जाने की खबर पढ़ते हैं, लड़कियों के वर्जिनिटी टेस्ट की खबर पढ़ते हैं और अखबार पलटकर किनारे रख देते हैं। इतना सब होने के बाद भी संकट नहीं आता। न चरित्र जाता है, न संस्कृति तबाह होती है।
पंजाब चुनाव से ठीक पहले बलात्कार के आरोपी बाबा राम रहीम को जेल से रिहा कर दिया जाता है, लेकिन न आपका देश संकट में आता है, न आपकी संस्कृति।
सच तो ये है कि आपको औरतों के कपड़े उतरने से कोई दिक्कत नहीं, आपको दिक्कत है औरत के अपनी मर्जी से ऐसा करने से। कपड़े उतरें, बशर्ते उतारने वाले आप हों।
आपकी मर्जी से, आपके सुख के लिए उतरें। वो अपनी मर्जी से ऐसा करे, आजादी से करे, खुशी से करे, स्वेच्छा से करे, आत्मनिर्भर होकर करे, अपना फैसला खुद लेकर करे तो आपको दिक्कत है।
आपको रेप से दिक्कत नहीं, आपको अपनी मर्जी से शादी करने वाली लड़की से दिक्कत है। उनके आजादी से घूमने, प्रेम करने, बॉयफ्रेंड बनाने से है। आपको लड़कियों का मुंह एसिड से जलाए जाने से भी दिक्कत नहीं, उनके इनकार करने, ना बोलने, आजादी मांगने से है।
आपको दिक्कत सड़क किनारे खड़े होकर पेशाब करने वाली मर्दानगी से नहीं है। घर की सुरक्षित चारदीवारी के भीतर भरोसेमंद परिवार के मर्दों के हाथों बलात्कार का शिकार होने वाली लड़कियों की तकलीफ से भी नहीं है।
अपने शहर के रेड लाइट एरिया में दस-दस रुपए के लिए, दो वक्त की रोटी के लिए अपना शरीर बेच रही लड़कियों की मजबूरी से नहीं है, सिर पर छत के लिए दुगुनी उम्र के मर्दों से ब्याह दी गई बच्चियों से नहीं है।
आपको दिक्कत अपने मोबाइल के प्राइवेट वॉट्सऐप ग्रुप में आने वाले पोर्न वीडियो से भी नहीं है, छिप-छिपकर पोर्न देखने से नहीं है, अपने साथ की सहकर्मी महिलाओं के शरीर का एक्सरे निकालने वाले, उनके बारे में भद्दे मजाक करने और चुटकुले बनाने वाले सहकर्मी मर्दों से भी नहीं है। आप उस पूरे अश्लील उपक्रम में शामिल हैं।
दीपिका पादुकोण की बिकिनी की डिजाइन और उसके रंग पर फतवे देना बंद कीजिए। वो एक आजाद और खुदमुख्तार औरत है।
किसी मर्द से उसकी पहचान नहीं। उसने अपना नाम, अपना पैसा, अपना आदर खुद कमाया है। वो बिकनी पहने तो अपनी मर्जी से और न पहने तो अपनी मर्जी से। वो जो चाहती है, वो करती है। वो अपने फैसले खुद लेती है।
सही-गलत, नैतिक-अनैतिक का क्या है। राम तेरी गंगा मैली की मंदाकिनी से भी इस महान देश की महान नैतिकता आहत हो गई थी। मेरा नाम जोकर की पद्मिनी के बारिश में भीगने से भी हुई थी।
सत्यम शिवम सुंदरम की जीनत अमान की खुली पीठ से भी हुई थी, लेकिन उन सारी फिल्मों में सारी स्त्रियों को पर्दे पर इस तरह दिखाने वाला शख्स तब सवालों के घेरे में नहीं था। वो ग्रेट शोमैन था। सदी का महान फिल्मकार।
आज से तीन-चार दशक पहले की उन सारी स्त्रियों के मुकाबले आज स्त्रियों के पास कहीं ज्यादा अधिकार और एजेंसी है। उनसे ज्यादा सचेत फैसला है दीपिका का। वो जानती हैं कि वो क्या कर रही हैं और क्या करना चाह रही हैं।
आपको संस्कृति की चिंता है तो यकीन जानिए, देश की संस्कृति दीपिका पादुकोण की बिकिनी की मोहताज नहीं है। वो कहीं और है। आपकी नजरों में, आपके दिमाग में, आपकी सोच में, आपकी आत्मा में। उसे देखिए और उसे ठीक करिए। दीपिका अपनी चिंता खुद कर लेगी।