हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को मतदान होना है और 8 दिसंबर को रिजल्ट के साथ नई सरकार के लिए सत्ता की राह खुल जाएगी। हिमाचल में भले ही भाजपा फ्रंट फुट पर खेल रही हो लेकिन इस पहाड़ी प्रदेश में रिस्क बिल्कुल भी नहीं लेना चाहती है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को सख्त हिदायत दी है कि टिकट चाहे जिसे मिले, सबको मिलकर कमल को विजयी बनाने के लिए काम करना चाहिए। पार्टी के सूत्रों का कहना है कि शीर्ष नेतृत्व हिमाचल में टिकट बंटवारे को लेकर काफी फोकस्ड है। बताया यह भी जा रहा है कि कम से कम 12 सिटिंग विधायकों को अपने टिकट से हाथ धोना पड़ सकता है। 

हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए सूत्र बता रहे हैं कि कांग्रेस ने करीब 35 उम्मीदवारों के नाम तय कर दिए हैं। बस घोषणा होनी बाकी है। टिकटों के बंटवारे के लिए कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी की एक बैठक भी हो चुकी है। हालांकि, दूसरी ओर भाजपा ने अभी इसके लिए औपचारिक प्रक्रिया शुरू ही नहीं की है। माना जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व इस बार कई सिटिंग विधायकों के टिकट काट सकती है।

कैसे होगा टिकटों का बंटवारा

अब क्योंकि विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है और नामांकन की आखिरी तारीख 25 अक्टूबर है। भाजपा जल्द ही अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर सकती है। सूत्रों का कहना है कि 'काम नहीं टिकट नहीं' के फॉर्मूले पर पार्टी विधायकों को टिकट देना तय कर सकती है। जिन विधायकों के क्षेत्रों में जनता का अच्छा रिस्पॉन्स नहीं है उन्हें फिर टिकट दिया जाएगा, इसकी बेहद कम संभावना है।

भाजपा हुई एक्टिव

हिमाचल में भले ही कल यानी शुक्रवार को चुनाव की तारीखों का ऐलान हुआ लेकिन, भाजपा दो माह पहले ही तैयारियां शुरू कर चुकी है। अगस्त महीने में सौदान सिंह को राज्य में चुनाव प्रभारी और देविंदर राणा को सह-प्रभारी नियुक्त किया जा चुका है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि दोनों को विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में फीडबैक का जिम्मा सौंपा गया था, जो टिकट बंटवारे के वक्त फैसले में काम आ सके।

उपचुनाव में करारी हार से सबक?

भले ही साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 68 सीटों में से 44 पर जीत हासिल की और कुछ ही वक्त बाद कांग्रेस के दो विधायक भी भाजपा में शामिल हो गए लेकिन, बावजूद इसके पिछले साल चार सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा को करारी हार झेलनी पड़ी थी। कांग्रेस ने यहां चारों सीटों पर जीत हासिल करके सभी को चौंका दिया था। हालांकि इस मामले में भाजपा ने तर्क दिया था कि कांग्रेस को पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की मौत के बाद सिंपेथी वोट मिले हैं। लेकिन भाजपा के लिए सोचने वाली बात यह थी कि पार्टी को सीएम जयराम ठाकुर के गृह क्षेत्र में भी हार का सामना करना पड़ा था।