काले अमरूद की खेती में समान्य अमरूदों की तुलना में कम खर्च आता है. इसकी खेती के लिए लिए ठंड मौस ज्यादा मुफीद माना जाता है. औषधीय गुणों का वजह से इसके फलों में कीट और रोग लगने की संभावनाएं भी काफी कम हो जाती हैं.

खेती किसानी में नए-नए फसलों की तरफ किसान तेजी से रुख करने लगे हैं. इस बीच दुर्लभ और नकदी फसलों की खेती की तरफ भी किसान दिलचस्पी दिखा रहे हैं. इसी कड़ी में किसानों के मध्य काले अमरूद की खेती करने की लोकप्रियता बढ़ी है.

औषधीय गुणों की तरह मशहूर

काला अमरूद अपने औषधीय गुणों की वज मशहूर है. इसमें मौजूद जरूरी पोषक तत्व आर एंटीऑक्सीडेंट्स मौजूद होते हैं, जो शरीर की रोगप्रतिरोधी को मजबूत बनाते हैं. काले अमरूद की खेती किसानों को कम वक्त में अच्छा-खासा मुनाफा दिला देती है.

हिमाचल प्रदेश में इस अमरूद की खेती बड़े पैमाने पर होने लगी है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार के कई किसान भी प्रयोग के तौर पर इसकी खेती कर ठीक-ठाक मुनाफा हासिल कर रहे हैं. इसकी पत्तियां और अंदर गूदे का रंग लाल होता है. वहीं, वजह 100 ग्राम तक होता है. दिखने में ये सामान्य अमरूदों की तुलना में ज्यादा आकर्षक लगते हैं.

कीट और रोग लगने की संभावना कम रहती है

विशेषज्ञों के अनुसार इस अमरूद की खेती में समान्य अमरूदों की तुलना में कम खर्च आता है. इसकी खेती के लिए लिए ठंड मौसम ज्यादा मुफीद माना जाता है. औषधीय गुणों की वजह से इसके फलों में कीट और रोग लगने की संभावनाएं भी काफी कम हो जाती है.

काले अमरूद की खेती के लिए जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है. इसकी खेती करने से पहले मिट्टी की जांच जरूर करा लें. इससे शुरुआती स्तर पर फसल खराब होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं. विशेषज्ञों की मानें तो यह फसल कम लागत में बंपर मुनाफा दे सकत है.

कब करें तुड़ाई

अन्य किस्मों के अमरूद के पौधों की तरह इसकी भी मजबूत और सही वृद्धि के लिए कटाई और छंटाई की जरूरत होती है. कटाई-छंटाई से इसके पौध के तने मजबूत होते हैं. अमरूद के पौधें की रोपाई के दो से तीन वर्ष बाद पौधे में फल शुरू हो जाते है. फलो की तुड़ाई पूरी तरह पकने के बाद करें.