जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री की यात्रा को लेकर बयान दिया। कहा- सनातन धर्म की अपनी अलग मान्यता है और यह यात्रा पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है।उत्तराखंड के बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद रविवार को धौलपुर के राजाखेड़ा में धर्मसभा में बोल रहे थे।अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा- पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने नारा दिया है कि 'जात-पात की करो विदाई'। इस नारे के पीछे उद्देश्य यह है कि जातियों में बंटे समाज को एक पार्टी विशेष के पक्ष में संगठित किया जाए। उन्होंने कहा कि राजनीति में हर पार्टी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाती है। इस यात्रा का भी उद्देश्य थोक वोट हासिल करना है, जो धर्म का विषय नहीं है। शंकराचार्य ने कहा कि धर्म की एकता, जात-पात को मिटा कर नहीं, बल्कि जातियों के बीच तालमेल स्थापित करके प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने तुलसीदास के रामचरितमानस के उत्तर कांड का उदाहरण देते हुए कहा, 'रामराज्य में सभी वर्णों और आश्रमों को उनके धर्म के अनुसार चलने का निर्देश दिया गया था, जिससे समाज में एकता और शांति स्थापित हुई।' उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए जातिगत आधार पर वोट देने की प्रवृत्ति को रोकना जरूरी है, लेकिन इसे धर्म का हिस्सा मानकर प्रस्तुत करना सही नहीं है।