ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह परिसर में हिंदू मंदिर होने के दावे पर एआईएमआईएम (AIMIM) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) ने प्रतिक्रिया दी है. बुधवार को दरगाह परिसर में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को कोर्ट द्वारा स्वीकार करने पर ओवैसी ने कहा कि 1991 का इबादतगाहों का क़ानून साफ़ कहता है के किसी भी इबादतगाह की मज़हबी पहचान को तब्दील नहीं किया जा सकता, ना अदालत में इन मामलों की सुनवाई होगी. दरअसल, हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अधिवक्ता ईश्वर सिंह और रामस्वरूप बिश्नोई के द्वारा दरगाह कमेटी के कथित अनाधिकृत कब्जा हटाने संबंधी याचिका दायर की थी. याचिका में दावा किया कि दरगाह की जमीन पर पहले भगवान शिव का मंदिर था. वहां पूजा पाठ और जलाभिषेक किया जाता रहा है. दरगाह परिसर में एक जैन मंदिर होने का भी दावा किया गया. कोर्ट द्वारा दरगाह परिसर में हिंदू मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका स्वीकार करने पर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सुल्तान-ए-हिन्द ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (RA) भारत के मुसलमानों के सबसे अहम औलिया इकराम में से एक हैं. उनके आस्तान पर सदियों से लोग जा रहे हैं और जाते रहेंगे. ओवैसी ने आगे लिखा, "कई राजा, महाराजा, शहंशाह, आए और चले गये, लेकिन ख़्वाजा अजमेरी का आस्तान आज भी आबाद है. 1991 का इबादतगाहों का क़ानून साफ़ कहता है के किसी भी इबादतगाह की मज़हबी पहचान को तब्दील नहीं किया जा सकता, ना अदालत में इन मामलों की सुनवाई होगी. ये अदालतों का क़ानूनी फ़र्ज़ है के वो 1991 एक्ट को अमल में लायें. बहुत ही अफ़सोसनाक बात है के हिंदुत्व तंज़ीमों का एजेंडा पूरा करने के लिए क़ानून और संविधान की धज्जियाँ उड़ायी जा रहीं हैं."वहींख्वाजा गरीब नवाज के खादिमों की चुनी हुई बॉडी अंजुमन कमेटी के सचिव (Anjuman Committee Secretary Sarwar Chishti) सरवर चिश्ती ने कहा कि अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज (Khwaja Garib Nawaz) की दरगाह थी, है और रहेगी. दरगाह कमेटी के वकील अशोक कुमार माथुर ने कहा कि 1000 साल से पुरानी दरगाह के अस्तित्व को अगर कोई चुनौती देता है तो यह उपासना अधिनियम 1991 और दरगाह ख्वाजा साहब एक्ट को संवैधानिक चुनौती देने वाली याचिका में पारित सर्वोच्च न्यायालय के 1961 के निर्णय के खिलाफ है.