नई दिल्ली। दुनिया भर में जीवन प्रत्याशा में अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है। जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसा देश अपनी बढ़ती बुजुर्ग आबादी के प्रभाव से निपटने के लिए चौराहे पर खड़ा है, वहीं अच्छी खबर यह है कि भारत विभिन्न पहलों के माध्यम से इस मुद्दे से निपटने के लिए अपने स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार कर रहा है।

 

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उदाहरण के लिए, हाल ही में स्वीकृत आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री आरोग्य योजना (एबी पीएम-जेएवाई) का 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए विस्तार, बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य सेवा को किफायती और सुलभ बनाकर इसे बढ़ावा देने वाला है। यह पहल बड़ी संख्या में लाभार्थियों को भरोसा दिलाएगी जो इस योजना के माध्यम से चिकित्सीय देखभाल का लाभ प्राप्त करने जा रहे हैं और प्रति परिवार उनके बुजुर्ग सदस्यों के लिए 5 लाख रुपये तक के मुफ्त स्वास्थ्य सेवा उपचार प्रदान करेगी।

 

मैं 2010 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में शामिल हुआ, जिसका अर्थ है कि मेरे लिए वृद्धावस्था चिकित्सा में एक दशक से अधिक समय हो गया है, जो इस देश में चिकित्सा विज्ञान में एक अपेक्षाकृत नया विषय है। इसकी शुरुआत 1978 में मद्रास मेडिकल कॉलेज में हुई थी और धीरे-धीरे एम्स सहित अन्य मेडिकल कॉलेजों में शुरू हो गई।
राष्ट्रीय वृद्ध स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम (एनपीएचसीई) के तहत, बुजुर्गों के जटिल स्वास्थ्य से निपटने के लिए डॉक्टरों को कुशल बनाने के लिए अब कई कॉलेजों में जेरियाट्रिक विशेषज्ञता की पेशकश की जाती है। मैं महसूस करता हूं कि न शुरू करने से बेहतर है देर से शुरु करना, क्योंकि तथ्य बताते हैं कि बुजुर्गों की देखभाल की उच्च मांग है और यह अब दोगुनी होने वाली है।

 

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वर्तमान में 153 मिलियन (60 वर्ष और उससे अधिक आयु के) बुजुर्गों की आबादी 2050 तक बढ़कर 347 मिलियन होने की उम्मीद है। यह जनसांख्यिकीय बदलाव केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि इसके सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य पर प्रभाव दूरगामी परिणाम होंगे। यह चिंताजनक है।

 

नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च (एनबीईआर) में प्रकाशित एक शोध पत्र "मेडिकल स्पेंडिंग ऑफ द यूएस ऑन एल्डरली" में पाया गया कि 70 और 90 वर्ष की आयु के बीच चिकित्सा व्यय दोगुने से अधिक हो जाता है। बुजुर्गों के लिए इस बढ़ते चिकित्सा व्यय के पीछे कई कारण हैं, जिनमें इस आयु वर्ग द्वारा सामना की जाने वाली जटिल स्वास्थ्य समस्याएं शामिल हैं, जिन्हें पुनर्वास और नर्सिंग देखभाल के रूप में महंगे और दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता होती है।लंबी अवधि के आश्रय स्थल जिसमें वृद्धाश्रम शामिल हैं, इस देश में बहुत व्यवस्थित नहीं हैं और इन स्थानों की व्यवस्थाओं के साथ समस्या मुख्य रूप से आश्रय पाने वालों की पहचान के दस्तावेज़ीकरण का अभाव है क्योंकि वे परिवारों या अन्य परिस्थितियों द्वारा त्याग दिए जाते हैं। इसलिए, मेरा सुझाव है कि इन आश्रय स्थलों को व इनमें रहने वालों को एबी पीएम-जेएवाई में शामिल किया जाए।

 

एम्स में अपने दो दशकों के अनुभव से, मैं कह सकता हूं कि जब मैं 2010 में मरीजों को देखता था, तो बुजुर्गों में बूढ़े होने के प्रति रवैया अधिक निराशावादी था। हालाँकि, जब मैं अब बुजुर्ग लोगों से मिलता हूँ, तो 80 से 85 वर्ष की आयु वर्ग के लोगों में भी जीने का जोश है, वे स्वस्थ जीवन जीना चाहते हैं।70 वर्ष और उससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों के लिए एबी पीएम-जेएवाई का राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन वास्तव में सरकार की एक स्वागत योग्य पहल है।