राजस्थान की सात सीटों पर 13 नवंबर को होने वाले उपचुनाव के लिए नामांकन का आज आखिरी दिन है. उपचुनाव में कई सीटों पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है. उनमें से एक सीट दौसा विधानसभा भी है. जहां से भाजपा ने किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा को प्रत्याशी बनाया है. वहीं कांग्रेस ने दलित कार्ड चलते हुए दीनदयाल बैरवा को टिकट दिया है. लेकिन दौसा की यह लड़ाई जितनी साफ़ दिख रही है इतनी है नहीं.इस चुनाव में दोनों ही दलों के कई बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है. दौसा में सचिन पायलट और किरोड़ी लाल मीणा की 'नाक' का सवाल है. यह टिकट सचिन पायलट का है, उनके ही निर्देश आये हैं' यह बात दीनदयाल बैरवा ने टिकट मिलने से एक दिन पहले कही थी. तब तक तो उनके टिकट का ऐलान भी नहीं हुआ था. ऐसे में साफ़ है कि इस टिकट में सिर्फ सचिन पायलट की चली है. उसका एक दूसरा कारण भी है, वो यह है कि मुरारी लाल मीणा के सांसद बनने के बाद खाली हुई इस सीट पर किसे टिकट मिले इसमें मुरारी लाल मीणा का किरदार भी अहम हो गया था. ऐसे में उनकी राय को भी प्रमुखता से रखा गया. और यह सब जानते हैं कि मुरारी मीणा सचिन पायलट के कितने करीबी हैं. वहीं, दूसरी ओर जगमोहन मीणा हैं, जिन्होंने कभी कहा था कि उनका टिकट अंधी महिला के पति जैसा है, वो कहीं है तो सही पर दिखता नहीं. लेकिन अब 'अंधी महिला' को 'पति' मिल गया है. लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर हार की जिम्मेदारी लेते हुए किरोड़ी लाल मीणा ने मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था, हालांकि उनके इस्तीफे को क़ुबूल किया गया या नहीं यह बता सिर्फ किरोड़ी लाल मीणा को पता है. अब तो किरोड़ी के खुद के सगे भाई मैदान में हैं. ऐसे में उनकी 'नैतिक जिम्मेदारी' और अधिक बढ़ जाएगी. राजस्थान की सियासत के जानकार मानते हैं कि यह चुनाव किरोड़ी लाल मीणा के राजनीतिक जीवन का सबसे मुश्किल चुनाव हो सकता है. इस चुनाव में कामयाबी और नाकामयाबी- पार्टी और समुदाय- दोनों के भीतर उनके कद का नए तरीके से अवलोकित करेगी