दुर्गा अष्टमी स्पेशल
टोंक जिले के देवली में हिंगलाज माता मंदिर में माता की पूजा नेत्र ज्योति देने वाली माता के रूप में होती है। चांदली गांव की पहाड़ियों में विराजमान माता की मूर्ति का इतिहास पाकिस्तान से जुड़ा है ।
मंदिर परिसर में बिखरे पत्थर को घिसकर आंखों की पलकों पर लगाने और अखंड ज्योति का काजल आंखों में लगाने से आंखों की रोशनी लौट आती है।
अरावली की पहाड़ियों की प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण चांदली की पहाडिय़ों में करीब 500 साल पहले माताजी की मूर्ति प्रकट हुई। यहां चांदली सरोवर के पास पहाड़ी पर पूजा होने लगी।
मंदिर ट्रस्ट से जुड़े पदाधिकारियों ने बताया कि पाकिस्तान में पहाड़ों पर विराजमान हिंगलाज माताजी मुस्लिम आक्रांताओं के आतंक से रुष्ट होकर राजस्थान में टोंक जिले के देवली के पास चांदली पहाड़ी पर प्रकट हुई। इस दौरान मातेश्वरी ने एक महिला भक्त को दर्शन देकर अपने आने की बात बताई। आज इस परिसर में लाखों करोड़ों रुपयों की लागत से मंदिर बनकर तैयार है। यहां प्रदेश भर के साथ देश विदेश से भी मां के दर्शन करने श्रद्धालु आते हैं। नेत्रहीन को रोशनी देने के साथ असाध्य बीमारियों और प्रेत बाधाओं का भी हिंगलाज मां इलाज करती है।
हिंगलाज माता के मंदिर में सालभर श्रद्धालु आते हैं लेकिन नवरात्रि पर माता के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो जाती है।
हिंगलाज माता के दरबार में नेत्रहीनों का कोई पंजीयन नहीं होता। मगर सालाना 50 से 60 श्रद्धालुओं को माताजी आंखों की रोशनी देती है। अखंड ज्योत का काजल आंखों में लगाया जाता है... इसलिए काजल उपलब्ध नहीं हो पाता है।
मां से मांगी गई मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु सोने चांदी के आभूषण और चांदी के नेत्र अर्पित करते हैं। सालाना लाखों की तादाद में प्रदेश और देशभर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। हर नवरात्र में 5 से 6 किलो चांदी इकट्ठी हो जाती है। वहीं 10-12 लाख रुपए मंदिर में चढ़ावा आता है।
नवरात्र में हर दिन पूजा अर्चना से पहले अलग-अलग दिन माता के नौ रूपों के तहत श्रृंगार किया जाता है। उपवास रखने और माता रानी के मंदिर में रहने वाले श्रद्धालुओं के लिए रोजाना भंडारा चलता है। सप्तमी को भजन संध्या आयोजित होती है। दुर्गा अष्टमी को मेला भरता है। यहां पंडितों द्वारा नौ दिन अनुष्ठान किए जाते हैं।