राजस्थान के उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी पेश नहीं होने के कारण शहर की अधीनस्थ अदालत ने परिवाद पर सुनवाई में लाचारी जताई। इस पर परिवादी ने शुक्रवार को सीएलजी सदस्यों की नियुक्ति के मामले में बैरवा के खिलाफ दायर अपना परिवाद वापस ले लिया। डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा के लिए परेशानियों के बीच यह बड़ी राहत मानी जा सकती है। दरअसल, हाल ही में उनके बेटे की रील वायरल होने के चलते उन्हें ट्रोलर्स का सामना करना पड़ा। सरकारी लेटरपैड पर थाने में सीएलजी सदस्य नियुक्त करने की सूची जारी करने के मामले में यह परिवाद दायर किया गया था। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के अंतर्गत परिवादी को लोक सेवक के खिलाफ सीधे परिवाद पेश करने का अधिकार नहीं है, बीएनएसएस के अंतर्गत सम्बंधित लोक सेवक के खिलाफ उसका वरिष्ठ अधिकारी ही परिवाद दायर कर सकता है। इस पर परिवादी ने अपना परिवाद वापस लेने की अनुमति मांगी थी। जिस पर महानगर मजिस्ट्रेट क्रम-11 ने उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा के खिलाफ दायर परिवाद वापस लेने के आधार पर खारिज कर दिया। परिवादी बलराम जाखड़ ने परिवाद में कहा कि कानूनन सीएलजी सदस्यों की नियुक्ति पुलिस अधीक्षक ही कर सकता है और ऐसे किसी व्यक्ति को भी सीएलजी सदस्य नियुक्त नहीं किया जा सकता, जो राजनीतिक दल से जुडा हुआ हो। इसके बावजूद डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा ने 21 जून को अपने लेटरपैड पर मौजमाबाद थाने के लिए 15 सीएलजी सदस्य मनोनीत कर दिए। बीते दिनों सीएलजी सदस्यों के मनोनयन से संबंधित एक लेटरपैड सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। जिसमें मौजमाबाद थानाधिकारी से 15 लोगों को सीएलसी सदस्य मनोनीत करने के लिए लिखा गया था।

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