राजस्थान में पहली बार एक साथ 7 विधानसभा सीटों पर अगले माह उपचुनाव घोषित होने हैं। तैयारी शुरू हो गई है। भाजपा-कांग्रेस सहित अन्य दलों ने भी रणनीतिक तौर पर तैयारी तेज कर दी है। लॉबिंग भी शुरू हो चुकी है।अगर बीते 10 साल का ट्रेंड देखें तो इनमें से सिर्फ एक सीट सलूंबर ऐसी है, जिस पर भाजपा 2018 एवं 2023 में जीती है। बाकी 6 सीटों में से 4 कांग्रेस के खाते में जाती हैं। अन्य दो सीटों पर निर्दलीय या आदिवासियों से जुड़ी पार्टी जीत हासिल करती है। इन स्थितियों से स्पष्ट है कि इस बार उपचुनाव के नतीजे लोगों में बेचैनी पैदा करने वाले होंगे।कारण यह है कि इस उपचुनाव में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की भी परीक्षा होगी। सवाल यह है कि क्या उनका पिछले 9 महीने का काम उन 6 सीटों पर भी जीत दिला पाएगा, जिन पर दो बार से भाजपा हार रही है? क्या इन सीटों का ट्रेंड बदलेगा? अगर यह ट्रेंड टूटता है तो सीएम भजनलाल सियासत में स्थापित चेहरे के रूप में उभरेंगे।वहीं, यह परिणाम कांग्रेस के लिए बेचैनी खड़ी करने वाले हो सकते हैं, क्योंकि 10 साल में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। मालूम हो कि दौसा, देवली-उनियारा, खींवसर, झुंझुनूं और चौरासी सीटें विधायकों के सांसद बनने, जबकि सलूंबर व रामगढ़ सीटें विधायकों के निधन के कारण खाली हुई हैं। बीते 10 साल में 16 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव हुए। पूर्व में वसुंधरा राजे की सरकार के समय हुए 8 सीटों के उपचुनाव में 6 पर विपक्षी यानी कांग्रेस की जीत हुई। पिछली अशोक गहलोत सरकार के समय हुए 8 सीटों पर उपचुनाव में भी सत्ता पक्ष यानी कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की। इन 16 सीटों में से भाजपा सिर्फ 3 सीटें ही जीत सकी, जबकि एक सीट पर भाजपा के समर्थन से रालोपा जीती थी।