राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि अगले वर्ष संघ कार्य को सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं। संघ की कार्य पद्धति दीर्घकाल से चली आ रही है। हम कार्य करते हैं तो उसके पीछे विचार क्या है। यह हमें ठीक से समझ लेना चाहिए। अपनी कृति के पीछे यह सोच हमेशा जागृत रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें राष्ट्र को समर्थ करना है। हमने प्रार्थना में ही कहा है कि यह हिंदू राष्ट्र है। क्योंकि हिंदू समाज इसका उत्तरदायी है। इस राष्ट्र का अच्छा होता है तो हिंदू समाज की कीर्ति बढ़ती है। इस राष्ट्र में कुछ गड़बड़ होता है तो हिंदू समाज पर आता है क्योंकि वहीं इस देश का कर्ताधर्ता है। डॉ. भागवत रविवार को अलवर के इन्दिरा गांधी स्टेडियम में अलवर नगर के स्वयंसेवकों के एकत्रिकरण कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हम अपने धर्म को भूलकर स्वार्थ के अधीन हो गए। इसलिए छुआछूत चला। ऊंच-नीच का भाव बढ़ा। हमें इस भाव को पूरी तरह मिटा देना है। जहां संघ का काम प्रभावी है। संघ की शक्ति है, वहां कम से कम मंदिर, पानी, शमशान सब हिंदुओं के लिए खुले होंगे। यह काम समाज का मन बदलते हुए करना है। सामाजिक समरसता के माध्यम से परिवर्तन लाना है। उन्होंने स्वयंसेवकों से सामाजिक समरसता, पर्यावरण, कुटुम्ब प्रबोधन, स्व का भाव और नागरिक अनुशासन इन पांच विषयों को अपने जीवन में उतारने का आव्हान किया। उन्होंने कहा कि जब इन बातों को स्वयंसेवक अपने जीवन में उतारेंगे तब समाज भी इनका अनुसरण करेगा।