प्रदेश में खींवसर सहित छह विधानसभा सीटों पर उप चुनाव कराने की सुगबुगाहट तेज हो गई। नागौर की खींवसर विधानसभा सीट पर आरएलपी विधायक हनुमान बेनीवाल के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह सीट खाली हो गई। अब यहां यह सीट आरएलपी के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गई है, वहीं सत्ता पर काबिज भाजपा भी इस सीट को जीतने की तैयारी में कोई कसर छोड़ती नहीं दिख रही। हालांकि, भाजपा को यहां लगातार हार का सामना करना पड़ा है। पिछला चुनाव भाजपा कम अन्तर से हारी और इस बार प्रदेश व देश में सरकार होने का फायदा भाजपा उप चुनाव में उठाने की तैयारियों में जुटी नजर आ रही है। प्रत्याशियों को लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है। सभी अपने-अपने हिसाब से तैयारी में जुटे हैं। उप चुनाव में मुख्य मुकाबला भले ही भाजपा एवं आरएलपी में दिखेगा, लेकिन कांग्रेस, बसपा, राजस्थान अभिनव पार्टी से डॉ. अशोक चौधरी सहित कई दल यहां अपना समीकरण बैठाने में लगे हैं। खींवसर विधानसभा सीट सृजित होने के बाद वर्ष 2008 में यहां से हनुमान बेनीवाल ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और बसपा के उम्मीदवार दुर्गसिंह चौहान को 24443 मतों से हराया। यही स्थिति वर्ष 2013 के चुनावों में रही। हालांकि इस चुनाव में बेनीवाल निर्दलीय लड़े, लेकिन बसपा के दुर्गसिंह चौहान को 23020 वोटों के अन्तराल से दूसरी बार चुनाव हराकर विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए। वर्ष 2018 में जब दुर्गसिंह चौहान ने मैदान छोड़ दिया तो निर्दलीय बेनीवाल ने कांग्रेस प्रत्याशी सवाईसिंह चौधरी को 16948 मतों से हराया।इसके बाद वर्ष 2019 में हनुमान बेनीवाल ने अपनी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाकर भाजपा से गठबन्धन किया और लोकसभा चुनाव लड़कर सांसद बने। खींवसर सीट पर अपनी पार्टी का भाजपा के साथ गठबंधन कर भाई नारायण बेनीवाल को चुनाव मैदान में उतारा। वो 4630 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी हरेन्द्र मिर्धा से जीते। इस बार के चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने भाजपा के रेवन्तराम डांगा को हराया। राजस्थान की राजनीति पर गहरी नजर रखने वालों के मुताबिक इस बार बीजेपी को हारने के लिए कांग्रेस और आरएलपी लोकसभा चुनाव के तर्ज पर गठबंधन कर सकती है। लेकिन इसमें भी गोविंद सिंह डोटासरा का पेंच फसा हुआ है, क्योंकि हाल ही में हनुमान बेनीवाल ने एक सभा में अप्रत्यक्ष रूप से डोटासरा के खिलाफ बयानबाजी की थी। वहीं दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि कांग्रेस और एलएलपी का गठबंधन हुआ तो इसका नुकसान गठबंधन को ही होगा और भाजपा इसका लाभ उठा लेगी।बताते चलें कि गत चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे तेजपाल मिर्धा ने लोकसभा चुनाव में आरएलपी और कांग्रेस का गठबंधन होने पर बगावत कर दी थी और भाजपा में शामिल हो गए थे। ऐसे में वे अपने समर्थकों के साथ गठबंधन को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। जिसका डर आरएलपी और कांग्रेस दोनों को भी है। जातीय समीकरण की बात करें तो खींवसर विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक संख्या जाट वोटरों की है। इसके बाद अनुसूचित जाति के वोटर है। यहां एक लाख 10 हजार से अधिक अकेले जाट वोटर है। करीब 65 हजार अनुसूचित जाति के वोट है। इसके बाद राजपूत एवं रावणा राजपूतों के करीब 30 हजार वोट है। ब्राह्मण, सुथार, मुस्लिम, राव, बिश्नोई, महाजन, कुम्हार सहित अन्य जातियों के 80 हजार के करीब वोट बताए जाते हैं।