हाल के वर्षों में वैश्विक मंच पर बायो वेपन को लेकर विश्व शक्तियों में एक-दूसरे के ऊपर आरोपों में वृद्धि देखी गई है। विशेष रूप से चीन, रूस और अमेरिका के बीच आरोप प्रत्यारोप बढ़े हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान इसकी शुरुआत हुई जब चीन पर वायरस की उत्पत्ति के आरोप लगे। चीन के दृढ़ इनकार के बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वायरस के वास्तविक स्रोत को निर्धारित करने में पारदर्शिता की कमी को एक महत्वपूर्ण बाधा बताया है। इस बीच चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अमेरिका पर संक्रामक रोगों के खिलाफ रक्षात्मक उद्देश्यों के बजाय बायो वेपन विकसित करने के इरादे से जैविक लैब चलाने का आरोप लगाया है। यूक्रेन पर अपने आक्रमण के बाद से रूस ने भी अमेरिका के खिलाफ इसी तरह के आरोपों को बढ़ा दिया है।इन आरोपों के पीछे क्या है मकसद

बड़ी शक्तियों के बीच आरोपों का यह आदान-प्रदान इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे जैव हथियारों के दावों का उपयोग कूटनीतिक दबाव बनाने और अंतर्राष्ट्रीय धारणाओं को आकार देने के लिए किया जा सकता है। ये आरोप एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं। अमेरिका ने चीन और रूस पर कॉग्निटिव वॉर में शामिल होने का भी आरोप लगाया है। इसका उद्देश्य सार्वजनिक धारणा बदलने और निर्णय लेने को प्रभावित करना है।अमेरिकी रक्षा विभाग (डीओडी) का मानना है कि चीन का इस तकरह के आरोपों को पीछे उद्देश्य जनमत को प्रभावित करना और चीन के अनुकूल परिस्थितियां बनाना है। इस दृष्टिकोण को भविष्य के संघर्षों में अमेरिका या तीसरे पक्ष की भागीदारी को रोकने या धारणाओं को आकार देने और समाजों को ध्रुवीकृत करने के लिए एक आक्रामक उपाय के रूप में संभावित असमित क्षमता के रूप में देखा जाता है।