देश को ग्रीन एनर्जी स्रोतों का समर्थन करने के उद्देश्य से निवेश और प्रयासों में महत्वपूर्ण वृद्धि हो रही है। निवेशक ग्रीन एनर्जी स्टॉक पर अपना ध्यान बढ़ा रहे हैं, जो अच्छी ग्रोथ संभावनाएं और संभावित लॉन्ग-टर्म लाभ प्रदान करते हैं। पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण को कम करना, कोयले की निर्भरता को कम करना और नए स्त्रोत की तलाश करना जिससे ग्रीन एनर्जी को बढावा मिले इन सभी उद्देश्यों को लेकर कोटा के रानपुर क्षेत्र में सेमीनार का आयोजन किया गया जिसमें देशभर से 80 से अधिक विषय विशेषज्ञ आए और उन्होंने नए उपक्रम लगाने, नए उत्पादन के स्त्रोत, सरकार की नई पॉलीसी, एनटीपीसी में प्रयोग में लिए जा रहे ग्रीन एनर्जी प्रोडक्ट सहित कई विषयों पर मंथन किया और ग्रीन एनर्जी के आने वाले भविष्य की संभावना को तलाशा। कार्यक्रम संयोजक अवनीश कुलश्रेष्ठ ने बताया कि एनटीपीसी, थर्मल, रीको, निगम सहित कई संस्थान के अधिकारी यहां उपस्थित हुए और ग्रीन एनर्जी को लेकर अपने विचार व्यक्त किए।
- बायो डीजल, बायोचार के क्षेत्र मे बढ़ने की आवश्यकता
इस क्षेत्र में कार्य कर रहे पुलकित नागपाल ने बताया कि भारत में अभी ग्रीन एनर्जी को लेकर जो प्रोडक्ट हैं जो बिजली बनाने में कोयले के साथ स्तेमाल किए जा रहे हैं, पेलेट हैं, बायोगेस है, इन सभी पर तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है, सब्सीडी और अधिक दिए जाने की जरूरत है, नई मशीने, जर्मनी व चाइना से लाई जानी चाहिए, नए निवेशक को आगे बढाने के लिए सरकार को और प्रयास करने चाहिए, तभी कहीं जाकर बायो डीजल पर कार्य होगा और लोग तेजी से आएंगे। उन्होंने कहा कि हम ग्रीन एनर्जी के लिए कार्य करेंगे तो पेस्टसाइड पर काम नहीं होगा और हम स्वत ही आॅर्गेनिक खेती दिशा में बढेंगे। उन्होंने इथॉनाल, बायोवेस्ट से बनने वाले प्रोडक्ट की और जाने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि भारत में पर्याप्त मात्रा में रो मेटेरियल है, लेकिन वह वेस्ट हो रहा है, पराली जलाई जा रही है, एग्रीकल्चर वेस्ट को लोग फैंक रहे हैं। उन्होंने कहा यूएस, स्वीडन, जर्मनी, चाइना, बायोडीजल अपना बना रहे हैं। बायोचार भी यह अपना बना रहे हैं। बायोडीजल के साथ बनने वाला सहायक प्रोडक्ट है, उन्होंने एमेजोन फोरेस्ट की जानकारी दी।
- 30 से 35 साल में हम कोल को खत्म कर देंगे
एनटीपीसी के सीनियर मैनेजर आशुतोष ने कहा कि भारत की कोयला आधारित ताप विद्युत पर अतीत की निर्भरता वैश्विक तापमान वृद्धि के बारे में बढ़ती जागरूकता के साथ पर्यावरण के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है, इसलिए सरकार सक्रिय रूप से हरित ऊर्जा को प्रोत्साहित कर रही है। हम इसी तरह से कोयले का खनन करते रहे तो आगामी 30 से 35 साल में हम कोल को खत्म कर देंगे। हमें दूसरी तरफ जाना पडेगा। एनर्जी जरूरत को हमे पूरा तो करना पडेगा, इसके लिए हमारे पास बडी मात्रा में बायोमास्क है। जिसमें सरसो, गेहूं की पराली, वुडन, कचरा और भी कई तरह से हम काम कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि पराली जलाने से एक्यूआर बढ रहा था जो घातक था, उसके बाद रिसर्च शुरू हुआ, एनटीपीसी ने सिस्टम को बदला। उन्होंने कहा कि हमे कोयले की आवश्यकता तो पडेगी लेकिन फिर भी 10 प्रतिशत हम दूसरे रिसोर्स पर जा चुके हैं और यह बढाने होंगे।
- एग्रीकल्चर वेस्ट किसानों के लिए मूल्यवान
समिनार के दौरान कई लोगों ने अपने विचार रखे जिसमें संस्थान निदेशक अंशुल जैन ने कहा कि यह अनुमान लगाया गया है कि यदि इन सभी कृषि अपशिष्टों को एकत्र किया जाए और बिजली उत्पादन के लिए उपयोग किया जाए तो इससे संभावित रूप से 50,000 मेगावाट से अधिक बिजली पैदा की जा सकती है और साथ ही किसानों को बहुत मूल्यवान अतिरिक्त आय भी मिल सकती है। प्रत्येक 12 मेगावाट संयंत्र को आमतौर पर 120,000 टन धान की पराली की आवश्यकता होती है, जिसे लगभग 15,000 किसानों से एकत्र किया जाएगा, जो लगभग 500 रुपए प्रति एकड़ या लगभग 5 एकड़ वाले औसत पंजाब के किसान के लिए 2,500 रुपये की अतिरिक्त आय अर्जित करेंगे। इसलिए प्रत्येक परियोजना स्थानीय किसानों को लगभग 4 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय दे सकती है। इस अवसर पर टेÑनिंग एण्ड स्किल डवलपमेंट प्रोग्राम मोहित वर्मा ने नए उपक्रम लगाए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हाडौती में बायोवेस्ट से एनर्जी प्रोडक्ट बनाने जाने की सबसे अधिक सम्भावनाएं हैं। यहां कई फेक्ट्री चल र ही है, जिसमें श्रीराम, डीसीएम, गोयल प्रोटीन व अनय है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण को कम करना, पर्यावरण संरक्षण, कोयल के निर्भरता को कम करने पर प्रयास हो रहे हैं, सरकार नए इनोवेशन कर रही है, नए लोगों को प्रोत्साहित कर रही है।