राजस्थान का कोटा शहर इंजीनियरिंग कोचिंग का हब माना जाता है. हर साल लाखों बच्चे यहां पढ़ने आते हैं. एडमिशन सीजन में कोचिंग संस्थानों के बाहर बच्चों की लम्बी लाइन लगती है लेकिन इस बार एडमिशन के घटते आंकड़ों ने सभी को हैरान कर दिया है. इसकी वजह कोटा में बढ़ते सुसाइड के मामले हैं.

कोटा में आत्मत्या का कदम क्यों उठाते हैं छात्र?

कोटा में रहने वाले रिटायर प्रोफेसर प्रेमचंद गौतम का कहना है कि कोटा रेलवे स्टेशन पर बच्चे अपने शहर से आकर जब ट्रेन से उतरते हैं तो पूरे स्टेशन पर उनको अलग-अलग कोचिंग संस्थान के बड़े-बड़े होर्डिंग नजर आते हैं. ऑल इंडिया रैंक होल्डर के बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगे होते हैं और उन टॉपर्स की फोटो और रैंक देखकर उन बच्चों को भी लगता है कि हमारी भी फोटो एक दिन इन होर्डिंग में लगेगी. उनको लगता है कि अब तो हम 100% डॉक्टर या इंजीनियर बनकर ही जाएंगे. सपना देख तो लेते है पर जब पूरा नहीं हो पाता तो वह अपने आप को नहीं संभाल पाते और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते  हैं.

कोचिंग संस्थानों के होर्डिंग देखकर गुमराह हो रहे छात्र?

कोटा पहुंचने के बाद जब बच्चे स्टेशन से बाहर निकलते हैं तो उनको एक ही रूप में दो इंसान मिलते हैं. एक ऑटो वाला और एक दलाल जो उनको मंजिल तक छोड़ने और अच्छा हॉस्टल दिलाने की बात कहता है. स्टेशन से 5 किलोमीटर की दूरी पर कोचिंग संस्थान हैं. उन बच्चों से ऑटो वाले ₹200 से ढाई सौ रुपए किराया वसूलते हैं और उसके बाद बारी आती है हॉस्टल वालों की. महंगे हॉस्टल में कमरा 10 से 25 हजार तक मिलता है. किसी बड़े कोचिंग संस्थान में एडमिशन लेना है तो करीब एक लाख रुपया खर्च करना पड़ता है. इसी तरह कोटा में दिनों दिन महंग बढ़ती गई और बच्चे किनारा करते गए और अब दि नगरी कोटा में बच्चों का आंकड़ा 2 लाख से घटकर 1.20 पर अटक गया है. साल 2022 में जहां पर विद्यार्थी 2.5 लाख से ज्यादा कोटा में आए थे, वहीं इस बार यह संख्या 1.20 लाख है.

JEE और NEET की तैयारी के लिए लाखों स्टूडेंट कोटा में सपने लिए आते हैं और बड़े मेडिकल और इंजीनियरिंग संस्थानों में पहुंचने के संघर्ष में सालों बिता देते हैं लेकिन अब यह दौर सिमटता सा नजर आ रहा है. राजस्थान के इस शहर में 1,400 करोड़ रुपये से ज्यादा की लग्जरी हॉस्टल परियोजना एक भूतहा शहर जैसी दिखने लगी है. कोटा के कई कोचिंग संस्थानों को यहां ट्रांसफर करने की योजना विफल होती दिख रही है.

कोटा में खाली पड़े हॉस्टल

बारां रोड पर कोरल पार्क में लगभग 250 से ज्यादा इमारतों पर 'टू-लेट' और 'फॉर सेल' के पोस्टर लगे हुए हैं. अलग-अलग संस्थानों के दाखिले में 35-40 प्रतिशत की गिरावट आई है. जिन निवेशकों ने कोरल पार्क की इस योजना में हिस्सा लिया था वह काफी परेशानी का सामना कर रहे हैं. शिक्षा नगरी कोटा में आमतौर पर सालाना 2 लाख से ज़्यादा JEE और NEET उम्मीदवार आते हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं है.

हॉस्टल की आय 3 लाख से 30 हजार पहुंची

कोटा शहर के अलग-अलग इलाकों में करीब 4 हजार हॉस्टल पीजी और 1500 से अधिक मैस संचालित किए जा रहे हैं. कोटा शहर में तकरीबन चार हजार हॉस्टल, पीजी चलाने वाले इन लोगों का गुज़ारा छात्रों के होने से चलता है. यहां अधिकतर घरों में 6-7 हजार तक के किराए पर छात्रों को रूम दिए जाते रहे हैं. कोरल पार्क सोसाइटी में हॉस्टल पीजी संचालकों की इस साल उनकी मासिक आय लगभग 3 लाख रुपये से घटकर 30 हजार रुपये रह गई है.