मोबाइल आधुनिक युग में जितना आवश्यक है उतना ही उसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं जो हर उम्र और वर्ग को प्रभावित कर रहे हैं। खासकर बच्चों में मोबाइल की लत उनके सर्वांगीण विकास में बाधक बन रही है। यह बात अफिनिटी हॉस्पिटल की ओर से जन जागृति अभियान के दौरान डॉ. नीना विजयवर्गीय, मनोचिकित्सक एवं काउंसलर, एमबीबीएस, डीपीएम (साइकेट्री), एमआईपीएस, ने कही। उन्होंने बताया कि अस्पताल में विषेशज्ञों की एक टीम लोगों के मानसिक स्वास्थ्य सुधार के लिए निरंतर कार्य कर रही है और सोशल मीडिया के माध्यम से भी लोगों को मोटिवेट कर रही है। डॉ. नीना विजयवर्गीय ने कहा कि भारत में मोबाइल फोन आवश्यकता के बजाय मनोरंजन का साधन बन गया है, जिस कारण लोग लगातार मोबाइल के सम्पर्क में रहते हैं जो की बहुत सी मानसिक बिमारियों का कारण बन रहा है।

इसी विषय को ध्यान में रखते हुए अफिनिटी हॉस्पिटल, तलवंडी चौराहा द्वारा रविवार को आमजन के लिए एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया। इस वर्कशॉप में मोबाइल की लत, इसके कारण, इससे होने वाली मानसिक बीमारियां, इससे जुड़ी भ्रांतियां व तथ्य, उपचार के उपाय आदि के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया। इस वर्कशॉप के दौरान डॉ. नीना ने बताया कि हर मोबाइल उपयोगकर्ता को अपने डिवाइस की लत लगने का खतरा रहता है। चाहे वह ऑनलाइन गेम हो, सोशल मीडिया हो, टेक्स्ट मैसेजिंग हो या ई–मेल हो, ऐसे कई तरीके हैं जिनसे मोबाइल ऐप उपयोगकर्ताओं को आकर्षित करते हैं और उन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल बना देते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, 20 वर्ष से कम उम्र के किशोरों में मोबाइल की लत लगने का सबसे अधिक जोखिम होता है क्योंकि इस आयु वर्ग में व्यवहार संबंधी समस्याओं के होने की संभावना अधिक होती है। किशोर हमेशा स्क्रीन टाइम को प्रभावी ढंग से मैनेज नहीं कर पाते हैं और वे अपने फोन पर सबसे ज्यादा समय बिताते हैं जो उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है।

- मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं

डॉ. नीना विजयवर्गीय ने बताया कि अध्ययनों से साबित होता है कि मोबाइल का अत्यधिक उपयोग चिंता और अवसाद का कारण बन सकता है। सोने से ठीक पहले अपने फोन पर स्क्रॉल करने से आपको बेचैनी भरी नींद का अनुभव हो सकता है। मोबाइल लत वाले व्यक्ति की परफोरमेंस हर क्षेत्र में कम होती चली जाती है, उसमें आत्मविश्वास की कमी हो जाती है, अनुशासित नहीं रह पाते हैं, गर्दन में दर्द या आंखों में तनाव, वह अव्यवहारिक हो जाता है, उसके शरीर का विकास रुक जाता है। शरीरिक व मानसिक रूप से कमजोर होने से उसे कई बीमारियों का खतरा भी बना रहता है- लोग चिड़चिड़े हो रहे हैं, गुस्सा बढ़ रहा है, एकाग्रता भंग हो रही है, सिर दर्द, नींद नहीं आना, बेचैनी, डिप्रेशन आदि। ऐसे लोगों को फिर मनोचिकित्सक को दिखाया जाना चाहिए।

साथ ही डॉ. नीना ने बताया कि वर्तमान परिवेश में बढ़ते तनाव के कारण लोगों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां बढ़ती जा रही हैं और इससे विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक बीमारियां होने लगी हैं। लेकिन जानकारी न होने की वजह से और समाज के डर के कारण लोग मनोचिकित्सक के पास जाना पसंद नहीं करते हैं। इसी समस्या को देखते हुए अफिनिटी हॉस्पिटल द्वारा एक टोल फ्री नंबर (18008906996) जारी किया गया है, जिसके द्वारा लोग अपनी मानसिक स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं को समझ सकते हैं और एक मनोरोग विशेषज्ञ की मदद से इन समस्याओं को हल भी कर सकते हैं, साथ ही उनकी पहचान भी गुप्त रखी जाती है। यह नंबर हर समय (24 घंटे) चालू रहता है और अधिक संख्या में लोग इसका लाभ उठा सकते हैं।