आरक्षित वर्ग एससी-एसटी को कोटे के भीतर कोटा देने और क्रीमीलेयर का आरक्षण समाप्त करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शनिवार को दौसा सांसद मुरारीलाल मीना ने पत्रकार वार्ता में केन्द्र सरकार को आड़े हाथों लिया है। मुरारीलाल ने कहा कि फैसले से लगता है कि सरकार ने सही पैरवी नहीं कर लापरवाही बरती है। एससी-एसटी का आरक्षण भारतीय संविधान में आर्थिक और पिछड़ेपन के आधार पर नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक, आदिम निवास परम्पराओं और सामाजिक स्थिति के आधार पर दिया गया है। सांसद ने कहा कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संविधान में जिस प्रकार एससी-एसटी को आरक्षण का प्रावधान किया था, उसके हिसाब से यह फैसला संविधान विरोधी प्रतीत होता है। सरकार आरक्षण व्यवस्था को विवादास्पद बनाकर समाप्त करना और इन वर्गों को आपस में लड़ाना चाहती है। उन्होंने कहा कि फैसले से एससी-एसटी वर्ग सहमत नहीं है, सरकार को पुनर्विचार के लिए अपील करनी चाहिए। सांसद मुरारीलाल ने कहा कि सरकार पहले एससी-एसटी की आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक जनगणना करवाए, जिससे उनकी वास्तविक स्थिति का पता चल सके। वर्तमान में उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में एससी-एसटी की हिस्सेदारी मात्र 3 प्रतिशत है, जबकि देश में जनसंख्या 25 प्रतिशत है। वर्गीकरण से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए था कि न्यायिक सेवा में इनकी अनुपातिक हिस्सेदारी बढ़े और जो पद खाली है उन्हें तुरंत भरा जाए।