जब टाइपराइटर आए तो दफ्तरों में से हाथों से लिखे जाने वाली बहुत सी नौकरियां खत्म हो गई। इसके बाद दौर आया कंप्यूटर्स का तो कहा जाने लगा कि ये बहुत सारी नौकरियां खत्म कर देगा। अब एआई को लेकर भी ऐसा ही दावा किया जा रहा है। लेकिन टेक्नोलॉजी के आने नौकरियां पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। बल्कि उनका स्वरूप बदल गया है।
डेनियल लिबरमैन (Daniel Lieberman) हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में जीवाश्म विज्ञानी (Paleoanthropologist) हैं। उन्होंने एक किताब लिखी है, 'एक्सरसाइज्ड: व्हाई समथिंग वी नॉट इवॉल्व्ड टू डू इज हेल्दी एंड रिवार्डिंग'। लिबरमैन ने इंसानों की फिजिकल एक्टिविटी के विकास की बड़ी बारीक स्टडी की है। उनका मानना है कि इंसान कसरत करके अपनी ऊर्जा खपाने के लिए पैदा नहीं हुए हैं, बल्कि उनका जन्म गप लड़ाने, आराम करने और नई चीजों की खोज करने के लिए हुआ है। जैसा कि हमारे पूर्वजों के समय यानी आदिमानव के समय होता था।
अगर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) इसी रफ्तार से आगे बढ़ती रही, तो शायद वही होगा, जो लिबरमैन बताते हैं। इंसान सिर्फ आराम करेंगे, गप लड़ाएंगे और मौज करेंगे, क्योंकि उनका सारा काम AI करने लगेगी। अमेरिका के अरबपति कारोबारी और टेस्ला के मालिक एलन मस्क (Elon Musk) का भी कहना है कि आखिर में AI सभी नौकरियों को खत्म कर देगा। फिर लोग शौक के लिए नौकरी करेंगे, जैसे कि आज शौकिया फिल्म देखते या फिर गेम खेलते हैं।
क्या सच में इंसानों की जॉब खा जाएगा एआई?
पहले लिखने का काम हाथ से होता था। इसके लिए हर दफ्तर में बहुत सी नौकरियां थीं। लेकिन जब टाइपराइटर आया, तो हाथ से लिखने वालों की बड़े पैमाने पर छंटनी हो गई। इसी तरह कंप्यूटर के आने के बाद भी कहा गया कि यह सारी नौकरियों को खत्म कर देगा। औद्योगिक क्रांति के मशीनरी को अपनाते वक्त भी यही डर था। एटीएम के समय भी कहा गया कि इससे बैंक कर्मचारियों की जरूरत खत्म हो जाएगी।
लेकिन, इन सबका इतिहास यही बताता है कि नई तकनीकों से नौकरियों का सिर्फ स्वरूप बदला, नौकरियां खत्म नहीं हुईं, बल्कि कई मायनों में उनमें इजाफा ही हुआ। इंसानों के लिए सहूलियत बढ़ी, सो अलग।
दिग्गज आईटी फर्म इन्फोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति का भी यही मानना है। वह कहते हैं कि एआई से नौकरियां खत्म होने की बात फिजूल है, इसी तरह का हौव्वा कंप्यूटर को लेकर भी फैलाया गया था। हालांकि, वह मानते हैं कि ऑटोमेटेड ड्राइविंग जैसी कई तकनीकों की वजह से नौकरियां जा सकती हैं। लेकिन, उनका यह भी कहना है कि एआई से इंसानों को फायदा ही होगा और उनकी कार्यकुशलता बढ़ेगी।
तो क्या एआई से हमें डरने की जरूरत नहीं?
नारायण मूर्ति की बात बिल्कुल दुरुस्त है। लेकिन, टाइपराइटर या कंप्यूटर के साथ अच्छी बात यह थी कि वे खुद ब खुद नहीं चल सकते थे। उन्हें चलाने की इंसानी हाथों की दरकार हमेशा रही। लेकिन, एआई के साथ ऐसा नहीं है। अभी भले ही इसके अंदर सोचने-समझने की कुव्वत ना हो, पर जिस हिसाब से यह एडवांस हो रहा है, वह दिन भी दूर नहीं लगता।
अभी एआई रोबोट खुद से फैसले नहीं ले सकते, झूठ बोलने जैसा इंसानी हुनर नहीं है। लेकिन सोच कर देखिए, अगर उन्हें यह नेमत मिल जाती है, तो? हॉलीवुड की बहुचर्चित साइंस फिक्शन फिल्म 'Matrix' मिसाल है कि सोचने-विचारने वाली मशीनें इंसानी सभ्यता के लिए कितनी घातक साबित हो सकती हैं।