खुदरा उर्वरक विक्रेताओं का प्रशिक्षण हुआ संपन्न
बून्दी। कृषि विज्ञान केन्द्र में 15 दिवसीय खुदरा उर्वरक विक्रेताओं के लिए प्रशिक्षण बुधवार को सम्पन्न हुआ। जिसमें जिले के 25 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष प्रो. हरीश वर्मा ने बताया कि प्रशिक्षण के दौरान खाद उर्वरक विक्रेताओं को मृदा में संतुलित उर्वरकों की मात्रा का प्रयोग, खाद, उर्वरक व मृदा नमूना लेने की विधि, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, फसलों के आवश्यक पोषक तत्वों की मात्रा और उनकी कमी के लक्षणों की पहचान करना, उर्वरकों में मिलावट, जैविक खेती, संरक्षित खेती, प्राकृतिक खेती, समन्वित कृषि प्रणालियों एवं समन्वित कीट रोग प्रबंधन के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई।
प्रशिक्षण प्रभारी डॉ. घनश्याम मीना ने बताया कि कृषि महाविद्यालय, कोटा से डॉ. बी.एल. नागर (उद्यान विशेषज्ञ), कृषि विज्ञान केन्द्र झालावाड़ से सेवाराम रूण्डला (मृदा वैज्ञानिक), कृषि महाविद्यालय हिण्डोली से अधिष्ठाता प्रो. एन.एल. मीणा, डॉ. सुभाष असवाल (सह आचार्य मृदा विज्ञान), डाॅ. राजेश महावर (सह आचार्य पादप प्रजनन एवं आनुवांशिकी), डाॅ. हनुमान सिंह राठौड़ (सहायक आचार्य पादप रोग विज्ञान), सब्जी उत्कृष्टता केन्द्र से उपनिदेशक दुर्गालाल मौर्य व डाॅ. तारेश कुमार, बहुउद्देशीय पशु चिकित्सालय से डॉ. मुकेश कुमार मीना, बडोदा स्वरोजगार ग्रामीण संस्थान से योगेश मीना, नाबार्ड के जिला महाप्रबंधक राजकुमार, कृषि अधिकारी मोनिका मीणा, आत्मा से कृषि अधिकारी राजेश शर्मा, कृषि अनुसंधान अधिकारी जितेन्द्र चौधरी, कृषि अधिकारी उद्यान सीताराम मीना ने संबंधित विषयों पर विस्तार से जानकारी दी।
प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणार्थियों को प्रक्षेत्र भ्रमण के लिए सब्जी उत्कृष्टता केन्द्र एवं कृषि अनुसंधान केन्द्र, कोटा पर संचालित विभिन्न इकाईयों का अवलोकन करवाया गया जिसमें समन्वित कृषि प्रणाली फसल परियोजना डाॅ.जे.पी. तेतरवाल (सह आचार्य शस्य विज्ञान) ने, ट्राइकोडर्मा इकाई में डॉ. डी.एल. यादव (सहायक आचार्य पादप रोग विज्ञान), जैविक खेती परियोजना में सुशीला कलवानियां, डाॅ. अंजू बिजारणिया (वरिष्ठ अनुसंधान अध्येता) ने शहद प्रसंस्करण इकाई का अवलोकन करवाया। साथ ही प्रायोगिक जानकारी भी दी गई। गोयल ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा संचालित जैविक कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र, कैथून में पवन कुमार टांक ने जैविक खेती इकाई एवं प्रक्षेत्र भ्रमण करवाकर प्रायोगिक जानकारी दी।
प्रशिक्षण प्रभारी डॉ. घनश्याम मीना ने कृषकों को प्राकृतिक खेती इकाई, वर्मीकम्पोस्ट इकाई, डेयरी इकाई, अजोला इकाई, नेपियर एवं बकरी पालन प्रदर्शन इकाइयों का भ्रमण कराया। डाॅ. मीणा ने प्रशिक्षण के दौरान बताया कि आजकल खेती में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं खरपतवार नाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से किसानों की मिट्टी जहरीली हो गई है, जिसका दुष्प्रभाव मनुष्यों पर एवं पशु-पक्षियों पर दिखने लगा है। अभी मनुष्यों में कम उम्र में उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, मधुमेह, कैंसर और हृदयाघात तथा पशुओं में बांझपन एवं बच्चेदानी बाहर निकलना, गर्भ न ठहरना इत्यादि बहुत अधिक समस्यायें आने लगी है। अतः इन सबसे बचने के लिए प्राकृतिक खेती में काम आने वाले उपादान तैयार करने व उपयोग की महत्वपूर्ण जानकारी दी।
समापन समारोह पर राम सिंह चौधरी, कृषि अधिकारी, कार्यालय संयुक्त निदेशक कृषि विस्तार ने प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक एवं बीज विक्रय करते समय रखने वाली सावधानियों, लाइसेंस प्रक्रिया स्टाक निर्धारण करने एवं कृषि विभाग द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं की जानकारी दी एवं प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाण पत्र एवं बैग वितरित किये गये। इस दौरान प्रशिक्षणार्थियों का मूल्यांकन किया गया।
कार्यक्रम के समापन पर आये हुये अतिथियों, प्रतिभागियों एवं सभी सहयोगी कर्मचारियों व अधिकारियों को धन्यवाद एवं आभार प्रशिक्षण की सह प्रभारी इंदिरा यादव ने दिया।
15 दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान केन्द्र के तकनीकी सहायक महेन्द्र चौधरी, वरिष्ठ अध्येता अनुसंधान दीपक कुमार, चन्द्र प्रकाश श्रृंगी, विकास ताखर, लोकेश प्रजापत व रामप्रसाद ने सहयोग प्रदान किया।
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