पत्तलकार और
पत्रकार!
दूरदर्शन जब नाम हुआ।
तो ये किसी टीवी प्रसारण और जनता के बीच का माध्यम " चैनल" प्रस्तुत करता बना।
जैसे नाटकीय मंच के लिए मिला " मंच " ।
उस दूर दर्शन और ग्रंथों से मिले दर्शन से भी बहुत दूर हैं। " दूर दर्शन" जिसकी असल व्याख्या कोई न समझ पाया।
आज की बात की जाएं तो सैकड़ों, अब हज़ार भी पूरे होने लगे।
इतने दूर दर्शी हो गए।
दूर दर्शी होना गलत नहीं।
लेकिन केंद्र पर टिक पाना बेहद जटिल।
आज के दूर दर्शनों में " जैसे ही टीवी ऑन होगा"!
खबरों से कोई लेना देना नहीं हैं।
ये बाजार सजा हैं नई पुरानी, sadi गली सब्जियों सा।
यहां भी झोलझाल हैं समझिएगा।
टीपी रीडर होना आसान हैं " मैं इसे बिल्कुल भी महान काम नहीं समझती हूं" ये प्रोड्यूसर, आउट पुट और दर्जन सदस्यों की मेहनत की फ़सल हैं।
जिसे टीपी रीडर एंकर केवल पढ़ रहा हैं और जनता उसके कपड़े, रंग ढंग, प्रदर्शन के सांग में डूब रही हैं।
ऐसा डूबना, वेंटिलेटर पर अटके पड़े रहने जैसा हैं।
मूल का पता ही नहीं।
खबर से कोई लेना ही नहीं, बस मसाला लगाते एंकर के दीवाने हुए जा रहे हैं।
लेकिन जो असल मेहनत करता हैं।
जो उसका खोजी हैं वो हैं उस बाजार के हुकुम का इक्का।
जिसे Ground Reporter कहते हैं।
वो और उसकी आत्मा जानती हैं कि उसने एक खबर के लिए, एक खबर की खोज में जितनी शिद्दत, जितनी ईमानदारी, जितनी मेहनत, जितना संघर्ष लगाया, उसका उसे कुछ न मिलना।
उसे तो बस खबर पहुंचाने को चुना गया।
वहीं उस खबर के असली मूल को जानता हैं।
क्योंकि
खोजी वहीं हैं।
उसे यह भी मालूम हैं आगे इस खबर के साथ कितने काट छांट,
छान बिन होना हैं।
तब कहीं ये खबर, टीवी के करिश्में में उतर आती हैं।
और जनता देख रही उस एंकर को जो, लिखा लिखाया पढ़ रहा।
रट रहा।
थोड़े बहुत लिपा पोती के चेहरे की मेहनत के पीछे, कुछ बोलने की बुद्धि का प्रयास भर हैं।
शब्दों का खेल भर हैं।
लेकिन
सारा संघर्ष रिपोर्टर का " जो ग्राउंड" यानी जमीन पर जाएगा।
असली कलाकार तो वहीं हैं।
बस यहीं तुम्हारे धर्म के ठेकेदारों का खेल हैं।
खास कर शांति का संदेश देने वाला इस्लाम " दयालु मोहम्मद" के पैग़ाम का फायदा उठाने वाले नफरतियों ने इसका गंदा खेल खेला हुआ हैं।
वहीं
जीजस के चाहने वाले सीधा सर कलम नहीं करते " धीमा धीमा जहर" देते हैं।
वैसे ही हिंदुओं के अनेक अधूरे ठेकेदार " राम कृष्ण शिव " पर गढ़े जा रहे हैं अपने अपने हिसाब।
याद रखना तुम मूल को कभी न बदल पाओगे।
एक दिन मूल तुम्हें माटी से बनाता हैं, उसी माटी में रौंद देगा।
उससे खेलों मत।
खेल तो वहीं सकता हैं।
सुधर जाओ।
जय श्री कृष्णा
जय हिंद