आज 783 वर्ष की होंगी आपणी बूंदी, 

समुचित विकास को तरसती ऐतिहासिक, सांस्कृतिक समृद्धि और पुरातत्व के वैभव से सराबोर बूंदी 

बूंदी। हाड़ौती की जन्मस्थली, महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण और वीर कुंभा की धरती 'छोटीकाशी' के नाम से विश्वविख्यात बूंदी सोमवार को 783 साल की हो जाएगी। बूंदी इतिहास में प्रेम, बलिदान, शौर्य व त्याग की कहानियां समेटे हुए ऐतिहासिक स्मारकों, सांस्कृतिक समृद्धि और पुरातत्व के वैभव से सराबोर है। कुंड - बावड़ियों की इस ऐतिहासिक नगरी को 'सिटी ऑफ स्टेपवेल्स' भी कहा जाता है। गढ़ पैलेस में स्थित चित्रशाला विश्व मे प्रसिद्ध है जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक आते है। नवल सागर झील में प्रतिबम्बित बूंदी का किला ओर महल ऐसा दृश्य जो सिर्फ सपनो में नजर आता है ।ऐसा रमणीय नगर जो समृद्ध ऐतिहासिक सम्पदा से भरपूर है । हरे भरे आम , अमरूद ओर बाग बगीचे लहलहाते चांवल , गेंहू के खेत बूंदी को ओर समृद्ध बनाते है। आज भी बूंदी का भव्य किला महल मंदिर नक्काशीदार जालीदार झरोखे , हल्के नीले रंग के मकान अन्य शहरों से अलग ही आभास दिलाते है। बूंदी को यहां की रानियों ने सजाया इतना खूबसूरत बनाया ...मगर अफसोस कि इन विरासतों को हम अपने ही हाथों से मिटाने को तुले हुए है। 

आज भी है विकास में पिछड़ने की टीस

बूंदी को आज भी विकास में पिछड़ने की टीस है। शहर के बाशिंदे मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। पहाड़ियों के बीच बसे इस छोटे से शहर पर शासन का ध्यान जाना चाहिए। बूंदी स्थापना दिवस पर अपेक्षा है कि शहर के सुव्यवस्थित और सुनियोजित विकास की योजना बने। तो आइए सब मिलकर संकल्प ले बूंदी की विरासत को बचाने का ।  

इनसे है पहचान बूंदी की 

बूंदी ऐतिहासिक शहर हैं। यहां चौरासी खंभों की छतरी, तारागढ़ महल, चित्रशाला, महल के दरवाजे पर विश्व प्रसिद्ध मोरनियां, रामगढ़ विषधारी अभयारण्य स्थापित है। गली-गली में धार्मिक स्थल और पुरामहत्व की धरती होने से शहर 'छोटीकाशी' के नाम से जाना जाता है। बूंदी की कजली तीज की सवारी आज भी शाही ठाठबाठ से निकलती है। बूंदी महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण, वीर कुंभा और हाड़ी रानी की धरती है। जहां कर्नल टॉड ने बूंदी के तारागढ़ को फरिश्तों द्वारा निर्मित बताया, वहीं हिंदी साहित्य के मतिराम ने अपने ललीत ललाम में बूंदी को सुख संपति का धाम बताते हुए लिखा कि “जगत विदित बूंदी नगर, सुख संपति को धाम, कलयुग में सतयुग बसे, यहां देव करें विश्राम”।

इतिहास के पन्नों से बूंदी...

इतिहास के जानकारों के अनुसार 24 जून 1242 में हाड़ा वंश के राव देवा ने इसे मीणा सरदारों से जीता और बूंदी राज्य की स्थापना की। कहा जाता है कि बून्दा मीणा ने बूंदी की स्थापना की थी, तभी से इसका नाम 'बूंदी' हो गया। तब बूंदी रियासत के अधीन केवल 12 गांव थे और बूंदी 300 घरों की बस्ती बताई। इतिहासकारों ने लिखा है कि जैता मीणा के समय के बने बुन्दा मीणा के प्राचीन महलों से ज्ञात होता है कि उस समय नाले को छोड़कर बस्ती आधुनिक चौगान दरवाजे से बाहर बसी हुई थी। बून्दा मीणा के महल आधुनिक नगर परिषद परिसर स्थित सराय में आज भी निर्मित हैं। बूंदी की पूर्व रियासत पर 24 राजाओं का राज रहा। जिनके शासन काल में अलग- अलग निर्माण कराए गए। शहर का विस्तार किया गया। कुंड- बावड़ियां और छतरियों का निर्माण कराया गया। हालांकि बूंदी के इतिहास को लेकर इतिहासकारों की अलग-अलग मान्यताएं भी हैं।

बूंदी की पूरा सम्पदा को सोशल मीडिया के माध्यम से पिछले 6 सालों से छायाकार नारायण मण्डोवरा देश विदेश के पर्यटकों तक पहुचा रहे है। छायाकार मण्डोवरा ने गूगल मेप पर बूंदी की ऐतिहासिक सम्पदा के फोटो डाले जिसे 23 लाख लोग देख चुके है ।इंस्टाग्राम व रील भी 20 लाख लोग देख चुके है।

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इच्छाशक्ति के अभाव में बूंदी की आभा में दिनोदिन आ रही है कमी

बूंदी का गौरवशाली इतिहास रहा है। छोटी काशी की विरासत बावड़ियां, कुंड, महल, किले, चित्र शैली यहां के पहाड़ नदियां जलप्रपात देशी ही नहीं विदेशी लोगों को भी अपनी और आकर्षित करते हैं। लेकिन हम हमारी विरासत को संभाल नहीं पा रहे हैं। यहां का हस्त शिल्प धीरे धीरे अपनी पहचान खोता जा रहा है। शहर का स्वरूप बिगड़ता जा रहा है। बोली संस्कृति लुप्त होती जारही है। जिसको बचाने के सार्थक प्रयास किया जाना चाहिए। 

बूंदी की आभा में दिनोदिन कमी आती जा रही है। बूंदी में कोई उद्योग धंधे नही है केवल पर्यटन ही रोजगार का साधन बन सकता है लेकिन ऐसा लगता है कि बूंदी श्रापित ही बनी रहे। इस कारण कोई ठोस प्रयास नही हो रहे। हालांकि पैलेस और नवल सागर में लगी फसाड़ लाइट उजाला होने का धीमा संदेश जरूर दे रही है।

सड़क, सफाई और बुनियादी सुविधाओं को तरसती बूंदी बंदरों, नंदी, और श्वानो से ही मुक्त नही हो रही हे। लेकिन विश्वास से बूंदी का वैभव वापस लोटेगा

- राज कुमार दाधीच, संयोजक भारतीय सांस्कृतिक निधि इंटेक चैप्टर बूंदी 

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बूंदी के पर्यटन विकास में अपनी जिम्मेदारी निभाने मे नाकाम रहा प्रशासन 

पर्यटन नगरी बूंदी का विकास स्वत स्फूर्ति हुआ है जिसमें कुछ कुछ यहाँ के नागरिकों की, कुछ यहां के हॉटेलियेर की महत्वपूर्ण भूमिका रही है लेकिन शासन, प्रशासन और नगर परिषद प्रशासन आजादी के बाद से आज तक बूंदी के पर्यटन विकास में अपनी जिम्मेदारी निभाने मे पूर्ण रूप से नाकाम रहे हैं। मधुकर गुप्ता सरीखे कुछेक अपवादों को छोड़ दें तो सबने लकीर पीटने का ही का किया है। शहर में नया कोई विकास नही हुआ है नई बनी सभी कॉलोनियाँ बेतरतीब बनी है अप अवैध है। जो बताती है कि इन कॉलोनियों से कितनों की जेबे भरी होंगी। जो अतीत की विरासत थी वह भी धीरे-धीरे धूल दूसरी और नष्टप्होती जा रही है। मजेदार बात यह है कि बूंदी के विकास के नाम पर जितना पैसा खर्च किया गया उसका अधिकांश हिस्सा व्यर्थ साबित हुआ है जिसकी कोई उपयोग उपयोगिता नहीं रही है । बूंदी के विकास की सुनियोजित प्लानिंग अभी तक नहीं बन पाई है और टेरेस गार्डेन,स्मृति कुंज सरीखे कुछ जो नए निर्माण हुए हैं वह भी देखरेख के अभाव में धूल धूसरीरित होते जा रहे हैं। नवल सागर के किनारे आजादी के ब्याज से आज तक करोड़ों रुपए की लाइट दसियों लगाई जा चुकी है। जो सब चोरी हो चुकी है हाल ही में माननीय सांसद ओम बिरला जी ने जरूर फसाड लाइट लगवाई हैजिससे पू तारागढ़, नवल सागर सहित बूंदी के स्मारक अंधेरे मे चमकने लगे है।लेकिन दिन के उजाले मे उनकी दुर्दशा रुला देती है। लेकिन जब तक झील में पानी नहीं भरेगा जब तक हम अपने वृक्षों को नहीं सजाएंगे तब तक पर्यटन विकास पूर्ण ऊंचाई पर पहुंचना बहुत मुश्किल है। सफाई व्यवस्था में हमारी छोटी काशी पूरी तरह फेल है जगह-जगह सड़क के बीच में कचरा डिपो बने हुए हैं ।कई कई दिन तक नहीं उठाते हैं नालियों की तब तक सफाई नही होती है जब तक वह पूरी ने भर कर बाहर ना आने लगे। यदि हम शहर के सफाई व्यवस्था को सुधार लेंगे तो वह निवासी समझ लेंगे कि यहां के पर्यटन विकास हो गया है क्योंकि आते जब देशी विदेशी पर्यटक इन कचरे के ढेरों पर अटखेलिया करते आवरा जानवरों को देखते हैं तो हमें बड़ी शर्म महसूस होती है। 

  • पीयूष पाचक, पर्यटन लेखक और कवि

(All Photos by Narayan Mandowara)