एक अनगढ बस्ती को सुव्यवस्थित रुप देकर विख्यात किया चौहानवंशी हाडाओं ने......

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महावीर कुल्फी सेन्टर - बूंदी

महावीर कुल्फी सेन्टर की और से बूंदी वासियों को दीपावली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं

Chauhanvanshi Hadas made famous by giving a systematic look to an ungarded settlement…..

शौर्य गाथा से परिपूर्ण हाडा राजवंशों की जन्मस्थली विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद ऐतिहासिक पर्यटन नगरी बूंदी जो अपने प्राचीनतम कलात्मक सैकड़ों बावरियों ऐतिहासिक स्थलों एवं मंदिरों के चलते छोटी काशी के नाम से विश्व प्रसिद्ध है। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन ऑथोरिटी द्वारा छोटी काशी बूंदी को स्थापना 781वे वर्ष पर पर्यटन के क्षेत्र में एक और उपहार देते हुए रामगढ़ विषधारी अभ्यारण को देश का 52वाँ और प्रदेश का चौथा टाइगर रिजर्व घोषित किया गया।

The first choice of foreign tourists, the birthplace of Hada dynasties full of heroic saga, is the historical tourist city of Bundi, which is world famous by the name of Chhoti Kashi due to its oldest artistic hundreds of Bavaris historical sites and temples. Giving another gift in the field of tourism to Choti Kashi Bundi on the 781 year of establishment by the National Tiger Conservation Authority, Ramgarh Vishdhari Sanctuary has been declared as the 52nd Tiger Reserve of the country and the fourth in the state.

अरावली पर्वतमाला की गोदी में बसी प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण बून्दी घाटी, जहाँ जैता नामक मीणा के अधीन 300 घरों की एक बस्ती थी। जहाँ मीणा जाति के व्यक्ति पहाड़ी गुफाओं, कंदराओं में झोपड़ियाँ और पठारी भागों में झोपड़िया बना कर रहा करते थें। बंबावदा के शासक बंगदेव के बड़े पुत्र राव देवा ने जैता मीणा पर आधिपत्य कर आषाढ़ बदी नवमी, वि.स.1298 को बून्दी राज्य की स्थापना की।

The Bundi valley, full of natural beauty, situated in the dock of the Aravalli ranges, where there was a settlement of 300 houses under the Meena named Jaita. Where the people of Meena caste used to make huts in mountain caves, huts in caves and huts in plateau parts. Rao Deva, the eldest son of Bangdev, the ruler of Bambawada, conquered Jaita Meena and established the Bundi state on Ashadh Badi Navami, Vs.1298

वृतान्त हैं कि जैता मीणा अभिमान पुर्वक अपने पुत्रों का विवाह कामदार चौहान राजपूत जसराज गोलवाल की पुत्रियों के साथ करना चाहता था और यह प्रस्ताव उसने जसराज के सम्मुख भी रख दिया। प्रस्ताव पाकर जयराज चिन्तित हुआ, चूँकि वह यह न तो विवाह करना चाहता था और न हीं कामदार होने के नाते इंकार कर सकता था। कोई उपाय न सूझने पर जसराज ने बंबावदा पहुँच कर राव देवा से यह सारा वृतान्त कह सुनाया। पूरी बात सुन कर राव देवा क्रोधित हुआ और तत्कान आक्रमण की योजना बनाने लगे। इस पर कामदार जसराज के कहने पर कि मीणा अपने राज्य मे ही पराक्रमी हैं, खुले युद्व में आपका सामना नहीं कर सकते।

There are accounts that Jaita Meena proudly wanted to marry off his sons with the daughters of Kaamdar Chauhan Rajput Jasraj Golwal and he also put this proposal in front of Jasraj. Jayaraj was worried after receiving the proposal, as he neither wanted to get married nor could refuse it being a workman. Not finding any solution, Jasraj reached Bambawada and narrated the whole story to Rao Deva. On hearing the whole thing, Rao Deva got angry and immediately started planning the attack. On this, when Kaamdar Jasraj said that Meena is mighty in his own state, he cannot face you in an open war.

अन्त में राव देवा ने छलपूर्वक परास्त करने का निर्णय लिया, क्योंकि युद्ध में वे लोग पलायन कर जीवित रह सकते थें। योजनानुरूप कामदार जसराज ने जैता मीणा के समक्ष अपनी पुत्रियों का विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और बून्दी से 4 कोस दूर ग्राम उमरथूणा में विवाह सम्पन्न करवाने का निश्चय किया। विवाह उत्सव में भाग लेने के बहाने राव देवा को भी आमंत्रित किया गया। राव देवा उसारा मीणाओं का समूल नाश करना चाहता था। अतः उमरथूणा के पहाड़ी दर्रे में बने जनवासे में जहाँ सभी मीणा बारात लेकर पहुँचे थें, वहीं घात लगा कर किये गये अविलम्ब संघर्ष में सभी को सदा के लिए सुला दिया। तदन्तर वि.सं. 1298 आषाढ़ बदी नवमी तदनुसार 24 जून 1241 ई. को राव देवा ने बून्दी पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया।

In the end, Rao Deva decided to defeat by deceit, because they could survive in the war by fleeing. According to the plan, Kamdar Jasraj accepted the marriage proposal of his daughters in front of Jaita Meena and decided to get the marriage done in village Umarthuna, 4 kos away from Bundi. Rao Deva was also invited on the pretext of participating in the marriage festivities. Rao Deva wanted to annihilate the Usara Meenas. Therefore, where all the Meenas had arrived with a procession in the public gathering built in the mountain pass of Umarthuna, they put everyone to sleep forever in the immediate struggle by ambush. Subsequently V.No. 1298 Ashadh Badi Navami Accordingly, on 24 June 1241 AD, Rao Deva established his dominance over Bundi.

बून्दी पर आधिपत्य के बाद जसराज की दोनों पुत्रियों का विवाह टोडा नरेश गोविन्द राज सौंलंकी के पुत्रों कुंभराज और कन्हड़ के साथ करवाया और खटकड़, गेण्ड़ोली, पाटन, लाखेरी और करवर पर अपना वर्चस्व स्थापित किया। राव देवा के विजय अभियानों से प्रसन्न होकर राव बंगदेव ने विजित प्रदेश राव देवा के स्वामित्व में सौप दिया। तब यहाँ कोई सुव्यवस्थित बसावट नहीं थी। हाड़ाओं ने नगर को बसाने के लिए बड़ा परिश्रम किया। बून्दी के नाले से सथूर के पहाड़ियों से निकलने वाली चन्द्रभागा नदी प्रवाहित थी। वर्तमान के मेंढ़क दरवाजे से मीरागेट तक यानि सदर बाजार, नागदी बाजार तक यह नाला दो हाथी डूब से भी गहरा और चौड़ाई लिये हुए था। परिक्षेत्र में सधन जंगल फैला हुआ था। आवासीय बस्ती प होकर पहाड़ी गुफाओं, कंदराओं में झोपड़ियाँ और पठारी भागों में झोपड़िया बना कर रहा करते थें। बून्दी के नाले से निकलने वाली चन्द्रभागा नदी के बहाव को पहाड़ो का मलबा डाल कर मोड़ा गया तो गहरे नालों को पहाड़ों के मलबे से भर कर कई वर्षो में इस बस्ती को नऐ आयाम दिए गए। राव देवा से 24 वें शासक महा राव बहादुर सिंह तक सभी हाड़ा शासकों ने बून्दी के व्यवस्थित बसावट को वर्तमान स्वरूप प्रदान किये।

After the suzerainty of Bundi, both the daughters of Jasraj were married to Kumbharaj and Kanhad, the sons of Toda king Govind Raj Solanki, and established their supremacy over Khatkar, Gendoli, Patan, Lakheri and Karwar. Pleased with the conquests of Rao Deva, Rao Bangdev handed over the conquered territory to the ownership of Rao Deva. There was no systematic settlement here then. The Hadas worked hard to establish the city. The Chandrabhaga river, originating from the hills of Sathoor, flowed from Bundi's drain. From the present Frog Darwaza to Miragate i.e. Sadar Bazar, Nagdi Bazar, this drain was deeper and wider than two elephants drowning. A dense forest was spread in the area. They used to live in residential settlements by making huts in hill caves, huts in caves and huts in plateau parts. The flow of the Chandrabhaga river coming out of Bundi's drain was diverted by dumping the debris of the mountains, then by filling the deep nallahs with the debris of the mountains, new dimensions were given to this settlement over the years. From Rao Deva to the 24th ruler Maha Rao Bahadur Singh, all the Hada rulers gave the present form to the systematic settlement of Bundi.

हाड़ा शासकों ने जहाँ पहाड़ी नाले को मिट्टी मलबें से भरवा कर, जंगलों को कटवा कर, उबड़ खाबड़ पठारी मैदानों को समतल करवा कर बस्ती बसाने का प्रयास किया। बढ़ती बसावट के साथ नगर को चारों तरफ ऊँचा परकोटा बनवा कर सुरक्षित किया और चारों दिशाओं में विशाल दरवाजे भी बनवाये। उतंग पहाड़ी पर तारागढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया और पानी की निर्बाध आपूर्ति हेतु चन्द्रभागा के पूर्ववत् मार्ग पर नवलसागर तो बाणगंगा के प्रवाह में जैतसागर का निर्माण भी करवाया और रानी जी की बावडी, भावल्दी बावडी, धाबाइयों का कुण्ड जैसे आकर्षक बावड़ियों सहित कुंड और कुएं भी बनवाये। कुण्ड और बावडियों की अधिकता के कारण इसे बावडियों का नगर भी कहा जाता हैं। नगर में कई नवीन महलों सहित हवेलियों, मंदिरों का निर्माण इन हाड़ा शासकों के द्वारा करवाया गया। हाड़ाओं से पहले बून्दी में मीणा सरदारों का आधिपत्य था। वर्तमान नगर परिषद में स्थित बूंदा मीणा के महलों से ज्ञात होता हैं कि अंतिम मीणा सरदार जैता मीणा के समय बूदी नाले को छोड़ कर वर्तमान के चौगान गेट के बाहर के मैदानी हिस्से में बस्ती बसी हुई थी। वर्तमान बालचन्दपाड़ा से बाहरली बून्दी का सम्पूर्ण निर्माण हाड़ा शासकों की देन हैं। राजपूताना के साथ भारत भर में अपनी धाक जमाने के वाले हाड़ा शासकों के कारण यह सम्पूर्ण परिक्षेत्र ‘हाड़ौती’ के नाम से जाना गया।

The Hada rulers tried to establish a settlement by filling the hill drain with soil debris, cutting down the forests, leveling the rough plateau plains. With the increasing settlement, the city was protected by building high walls on all sides and huge doors were also made in all four directions. Constructed Taragarh fort on Utang hill and for uninterrupted supply of water, Navalsagar on the east side of Chandrabhaga and Jaitsagar in the flow of Banganga and also got wells and wells with attractive stepwells like Rani ji's stepwell, Bhavaldi stepwell, Dhabai ka kund. Make it Due to the abundance of ponds and stepwells, it is also called the city of stepwells. Havelis, temples including many new palaces in the city were built by these Hada rulers. Before the Hadas, Bundi was ruled by Meena chieftains. It is known from the palaces of Bunda Meena located in the present city council that at the time of the last Meena Sardar Jaita Meena, except the Budi drain, the settlement was settled in the plains outside the present Chaugan Gate. The entire construction of outer Bundi from the present Balchandpada is the contribution of Hada rulers. This entire region came to be known as 'Hadauti' due to the Hada rulers who established their dominance throughout India along with Rajputana.

बून्दी न केवल हाड़ाओं के शौर्य के लिए जान गया अपितु कला, साहित्य संस्कृति पर भी यहां की अमिट छाप रही। महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण, पं.गंगासहाय, मेहता लज्जाराम जैसे साहित्यकार यहां हुए तो मतिराम ने भी यहां पर काव्य साधना की। राजस्थान का पहला समाचार पत्र ‘सर्वहित’ का प्रकाशन मेहता लज्जाराम द्वारा बून्दी से किया गया तो पं. गंगासहाय ने सर्वप्रथम न्याय प्रक्रिया को ‘प्रबंध सार’ के रूप में लिखित रूप भी दिया। 1879 में बाल विवाह और नाता प्रथा जैसी कुरीतियों पर कानून और 1870 में महिलाओं को पैतृक संपति मे अधिकार देने का कानून भी सर्वप्रथम यहीं बना। हाड़ाओं के आश्रय में ही चित्रकला में बून्दी शैली विकसित भी हुई, गढ पैलेस स्थित रंगशाला में निर्मित बून्दी शैली के भित्तिचित्र पर्यटकों और कला प्रेमियों को आकर्षित करते हैं। मेवाड मे जौहर करने वाली कर्मावती और शीश काट कर देने वाली हाडीरानी जैसी हाडा वंश की ललनाओं के शौर्य सौन्दर्य से पूरित इस नगरी को यहाँ की धार्मिक और सांस्कृतिक विशेषताओं ने इसे ‘छोटी काशी’ का उपनाम भी दिया।

Bundi was not only known for the bravery of the Hadas, but it also had an indelible mark on art, literature and culture. Writers like Mahakavi Suryamalla Mishran, Pt.Gangasahay, Mehta Lajjaram happened here, so Matiram also did poetry meditation here. Rajasthan's first newspaper 'Sarvahit' was published by Mehta Lajjaram from Bundi, then Pt. Ganga Sahai first gave a written form of justice process in the form of 'Prabandh Saar'. In 1879, the law on the evils like child marriage and kinship system and in 1870 the law to give rights to women in ancestral property was also made here for the first time. The Bundi style of painting also developed under the shelter of the Hadas, the Bundi style frescoes built in the Rangshala at the Garh Palace attract tourists and art lovers. The religious and cultural characteristics of this city, complemented by the valorous beauty of the Hada dynasty's children like Karmavati and Hadirani who cut off her head in Mewar, also gave it the

 nickname of 'Choti Kashi'.