6 शुभ योग विशेष बना रहे हैं निर्जला एकादशी को

जीवन के सभी कष्ट होंगे दूर व दान करने से होगी अक्षय फल की प्राप्ति

बून्दी। इस बार 18 जून मंगलवार को निर्जला एकादशी का व्रत उपवास किया जाएगा, जो हर वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। निर्जला एकादशी व्रत के महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपनी रक्षा व भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए मनुष्य ही नहीं देवता, दानव, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नवग्रह आदि भी यह व्रत रखते हैं। इस व्रत के करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर बैकुंठ धाम को प्राप्त करता है।

निर्जला एकादशी पर 6 शुभ योग

ज्योतिषाचार्य पं. विनोद कुमार गौतम ने बताया कि निर्जला एकादशी के दिन 6 शुभ योग भी बन रहे हैं, जिससे इस पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है। निर्जला एकादशी के दिन शिव योग, सिद्ध योग, त्रिपुष्कर योग, त्रिग्रही योग, बुधादित्य योग, शुक्रादित्य योग जैसे महान योग बन रहे हैं। इन शुभ योग में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा अर्चना करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है।

निर्जला एकादशी 18 जून को क्यों

ज्योतिषाचार्य पं. विनोद कुमार गौतम के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 17 जून की प्रातः 4 बजकर 42 मिनट से 18 जून को प्रातः 6 बजकर 23 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि के चलते निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून को रखा जाएगा। इस व्रत को सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक बिना अन्न व जल के किया जाता है। वहीं द्वादशी तिथि 19 जून को 7 बजकर 29 मिनट तक रहेगी इसलिए 19 जून को एकादशी व्रत का पारण किया जाएगा।

निर्जला एकादशी पर दान करने की परंपरा

ज्योतिषाचार्य पं. विनोद कुमार गौतम ने बताया कि साल की सभी चौबीस एकादशियाँ में निर्जला एकादशी महत्वपूर्ण एकादशियों में से एक है। इस दिन व्रत रखने से सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन माना जाता है, क्योंकि ज्येष्ठ माह की भीषण गर्मी में रखा जाता है और भोजन ही नहीं जल तक ग्रहण नहीं किया जाता है, मगर भगवान विष्णु की कृपा से भक्त निर्जल रहकर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। जिससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति के साथ आध्यात्मिक उन्नति, सुख-शांति, समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। निर्जला एकादशी पर जल दान, गोदान, छाता दान के साथ जल पिलाने का विशेष महत्व होता है। इससे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। पीपल के पेड़ की पूजा करना, पीपल पर जल चढ़ाना व एकादशी की कथा सुनना बेहद लाभकारी होता है। निर्जला एकादशी में ठंडक प्रदान करने वाली चीजे जैसे घड़ा-सुराही, छाता, चीनी को दान करने की परंपरा भी है।