लोकसभा चुनाव में एनडीए सरकार की जीत के साथ ही आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए विशेष श्रेणी का दर्जाकी मांग चर्चा में आ गई. बिहार वर्ष 2000 से विशेष श्रेणी का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है। वहीं आंध्र प्रदेश के राजनीतिक दल 2014 से ही विशेष श्रेणी का दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर कई बार सड़कों पर उतर चुके हैं। इसके अलावा झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे अन्य राज्य भी विशेष श्रेणी का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं। असम, नगालैंड, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना सहित 11 राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया है। यह दर्जा केंद्र सरकार द्वारा क्षेत्रों या राज्यों का वर्गीकरण है, ताकि क्षेत्र के विकास के लिए कर लाभ और वित्तीय सहायता के रूप में विशेष सहायता प्रदान की जा सके। सूचीबद्ध मानदंडों में पहाड़ी और कठिन भूभाग, कम जनसंख्या घनत्व या जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा, पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक स्थान, आर्थिक पिछड़ापन, राज्य के वित्त की स्थिति आदि शामिल है। जिन राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा मिलता है उन्हें कई तरह के लाभ भी मिलते हैं। जैसे, इन राज्यों को बढ़ी हुई धनराशि मिलती हैं, वहीं केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए आवश्यक धनराशि का 90 फीसदी केंद्र सरकार देती है, जबकि अन्य राज्यों के लिए यह 60 प्रतिशत या 75 प्रतिशत है। कर रियायतें भी मिलती हैं, जिसमें उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क में छूट के साथ-साथ आयकर और कॉर्पोरेट कर में छूट भी शामिल है।