भाजपा की राजस्थान में 25 लोकसभा सीटों में से 14 सीटें आने से प्रदेश नेतृत्व को भारी झटका लगा है। पार्टी आलाकमान इस बात से खासे नाराज हैं। इस चुनाव में भाजपा को कई बड़े नेताओं की कमी खली। ये बड़े नेता एक-दो लोकसभा सीटों पर ही इतने व्यस्त हो गए कि इनका दूसरी सीटों के चुनावी मैनेजमेंट पर ध्यान ही नहीं गया। चुनाव प्रचार का सारा जिम्मा प्रदेश स्तर पर अकेले मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पर आ पड़ा। सीएम अकेले ने ही प्रदेश में 90 सभा और रोड शो किए। प्रदेश की दो बार मुख्यमंत्री रहीं राजे अपने पुत्र सांसद दुष्यंत सिंह के संसदीय क्षेत्र तक ही सीमित रहीं। वे पूरे चुनाव में झालावाड़-बारां संसदीय में ही चुनावी बैठकें करती रहीं। प्रचार के लिए उनकी कई सीटों से मांग भी आई थी. राजसमंद से सांसद का टिकट मांग रहे थे। पार्टी ने टिकट नहीं दिया। चूरू से पार्टी ने राहुल कस्वां का टिकट काट कर देवेन्द्र झाझड़िया को टिकट दिया। झाझड़िया का सारा चुनाव राठौड़ के जिम्मे रहा। वे अन्य क्षेत्रों में नहीं जा सके। प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पार्टी विधानसभा चुनाव जीती। चित्तौड़गढ़ से खुद सांसद का चुनाव लड़ने में व्यस्त हो गए। चुनाव लड़ने की वजह से जोशी भी चितौड़गढ़ तक ही सीमित रह गए। अन्य क्षेत्रों में जा ही नहीं सके। अजमेर से सांसद का टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया। चुनाव घोषणा के बाद कुछ समय के लिए शेखावाटी की एक-दो सीट पर प्रचार करने जरूर गए। हरियाणा चुनाव का जिम्मा दे दिया गया। इसके बाद वहीं व्यस्त रहे। शेखावत जोधपुर से सांसद का चुनाव लड़ रहे थे। प्रदेश भाजपा के दिग्गज नेताओं में शामिल थे। पार्टी ने स्टार प्रचारक भी बनाया, लेकिन शेखावत का भी चुनाव में ज्यादातर समय जोधपुर संसदीय क्षेत्र में ही बीता।